________________ 114 कातन्त्ररूपमाला वाहेर्वाशब्दस्यौत्वं // 334 // वाहेर्वाशब्दस्यौत्वं भवति, अघुट्स्वरे परे। प्रष्ठौहः / प्रष्ठौहा। प्रष्ठवाड्भ्यां। प्रष्ठवाड्भिः / प्रष्ठवाट्सु / इत्यादि / अनड्वाह् शब्दस्य तु भेद: / सौ - सौ नुः // 335 // अनड्वाह इत्येतस्य नुरागमो भवति सौ परे / अनड्वान् / अनड्वाहौ। अनड्वाहः / सम्बुद्धावुभयोईस्वः // 336 // चतुरनडुहोरुभयो: सम्बुद्धौ ह्रस्वो भवति / हे अनड्वन् 3 / हे अनड्वाहं / अनड्वाहौ। मुहा मुग्भ्याम्, मुड्भ्याम् मुग्भिः, मुभिः मुग्भ्याम्, मुड्भ्याम् मुग्भिः, मुभिः मुहः मुग्भ्याम्, मुड्भ्याम् मुग्भिः, मुभिः . . मुहः मुहोः मुहाम् मुहि महोः मुक्षु, मुट्सु, मुट्त्सु स्नुह और स्निह् शब्द के रूप भी इसी प्रकार से चलते हैं / प्रष्ठवाह् शब्द में कुछ भेद है / प्रष्ठवाद् + सि “हशषछान्ते” इत्यादि सूत्र से 'ह' को 'ड्' होकर एवं प्रथम अक्षर भी होकर 'प्रष्ठवाट, प्रष्ठवाड्' बना। अधुट् स्वर वाली विभक्ति में भेद है। प्रष्ठवाह + शस् अघुट् स्वर वाली विभक्ति के आने पर वाह के 'वा' शब्द को औ' हो जाता है // 334 // अत: प्रष्ठ औह + अस् = संधि होकर “प्रष्ठौह:” बना। प्रष्ठवाट प्रष्ठवाड् प्रष्ठवाही प्रष्ठवाहः हे प्रष्ठवाट, प्रष्ठवाड् ! हे प्रष्ठवाही हे प्रष्ठवाहः प्रष्ठवाहम् प्रष्ठवाही प्रष्ठौहः प्रष्ठौहा प्रष्ठवाड्भ्याम् प्रष्ठवाभिः प्रष्ठौहे प्रष्ठवाड्भ्याम् प्रष्ठवाड्भ्यः प्रष्ठौहः प्रष्ठवाड्भ्याम् प्रष्ठवाड्भ्यः प्रष्ठौहः प्रष्ठोहोः प्रष्ठौहाम् प्रष्ठौहि प्रष्ठोहोः प्रष्ठवाट्सु,प्रष्ठवाट्त्सु अनड्वाह् शब्द में कुछ भेद है। अनड्वाह +सि सि विभक्ति के आने पर अनड्वाह को 'नु' का आगम हो जाता है // 335 // अत: 'अनड्वान्ह' रहा। संयोग के अन्त का लोप होकर 'अनड्वान्' बना। संबोधन में अनड्वाह् + सि ___ चत्वार् और अनड्वाह् शब्द के 'वा' को संबुद्धि सि के आने पर ह्रस्व हो जाता है // 336 // अत: हे 'अनड्वन्' बना। अनड्वाह् + शस्