________________ स्वरान्ता: नपुंसकलिङ्गाः 71 अन्यादेस्तु तुः // 241 // अन्यादेर्नपुसंकलिङ्गात्परयोः स्यमोर्लोपो भवति तुरागमश्च / द्वितीयस्तुशब्दः किमर्थम् ? असम्बुब्यधिकारनिवृत्त्यर्थम्। वा विरामे // 242 // विरामे धुटां प्रथमस्तृतीयो वा भवति / अन्यत्, अन्यद् / अन्ये / अन्यानि / हे अन्यद्, हे अन्यत् / हे अन्ये / हे अन्यानि // शेषं पुंवत् / एवमेकतरं वर्जयित्वान्यतरप्रभृतयः। नैकतरस्य // 243 // एकतरशब्दस्य नपुंसकलिङ्गे तुरागमो न भवति / एकतरम् / एकतरे / एकतराणि / हे एकतर / हे एकतरे। हे एकतराणि। पुनरपि। अन्यत्र सर्वशब्दवत् / इत्यकारान्ताः। आकारान्तो नपुंसकलिंग: सोमपाशब्दः। स्वरे द्वस्वो नपुंसके॥२४४ // ___ नपुंसक लिंग में अन्य आदि से परे सि और अम् का लोप होकर 'तु' का आगम हो जाता है // 241 // उ का अनुबन्ध लोप होकर अन्यत् बना। सूत्र में दूसरा तु शब्द किसलिये है ? असम्बुद्धि अधिकार की निवृत्ति के लिये है। विराम में धुट को तृतीय अक्षर विकल्प से होता है // 242 // अन्यत्, अन्यद् अन्ये अन्यानि | अन्यस्मै अन्याभ्याम् अन्येभ्यः हे अन्यत् !,हे अन्यद् ! हे अन्ये ! अन्यानि ! | अन्यस्मात्,द् अन्याभ्याम् अन्येभ्यः अन्यत्, अन्यद् अन्ये अन्यानि | अन्यस्य अन्ययोः अन्येषाम् अन्येन _ अन्याभ्याम् अन्यैः | अन्यस्मिन् अन्ययोः अन्येषु इस प्रकार से एकतर को छोड़कर अन्यतर आदि शब्द चलते हैं। एकतर + सि, एकतर + अम् एकतर शब्द से परे सि, अम् विभक्ति के आने पर तु का आगम नहीं होता है // 243 // ''अत: मु का आगम होकर एकतरम् एकतरे एकतराणि। अकारांत शब्द हुये। अब आकारांत नपुंसकलिंग ‘सोमपा' शब्द है। नपुंसक लिंग में वर्तमान स्वर ह्रस्व हो जाता है // 244 // अत: सोमप+सि है। 'अकारादसंबुद्धौ मुश्च' २३६वें सूत्र से अकारांत नपुंसक लिंग से परे 'सि, अम्' का लोप होकर 'मु' का आगम हो गया तब सोमपम् बना। सोमपम् सोमपे सोमपानि / सोमपाय सोमपाभ्याम् सोमपेभ्यः हे सोमप ! हे सोमपे ! हे सोमपानि !| सोमपात, सोमपाभ्याम् सोमपेभ्यः सोमपे सोमपानि सोमपस्य सोमपयोः सोमपानाम् सोमपेन सोमपाभ्याम् सोमपैः सोमपयोः सोमपेषु सोमपम् सोमपे १.पर्जन्यवल्लक्षणप्रवृत्तया ह्रस्वस्यापि ह्रस्वः। काण्डे कुण्ड्ये काण्डीभूतं कुलमित्यत्र नपुंसके इति लिङ्गोपादानान्न भवति / युगवरत्राय युगवरत्रार्थमित्यत्रासिद्धं बहिरङ्गमन्तरङ्गे इति न भवति /