________________ 70 कातन्त्ररूपमाला औरीम्॥२३७॥ नपुंसकलिङ्गात्पर: औरीमापद्यते / कुले। जस्शसौ नपुंसके // 238 // जस्शसौ नपुंसकलिङ्गे घुट्संज्ञौ भवतः / जस्शसोः शिः // 239 // सर्वनपुंसकलिङ्गात्परयोर्जस्शसो: शिर्भवति / शकारः सर्वादेशार्थः / ____ धुस्वराघुटि नुः // 240 // धुट: पूर्व: स्वरात्परश्च नपुंसकलिङ्गे घुटि परे नुरागमो भवति / घुटि चासम्बुद्धौ इति दीर्घः / कुलानि / हे कुल। हे कुले। हे कुलानि / पुनरपि / कुलम् / कुले। कुलानि / कुलेन / कुलाभ्याम् / कुलैः / अत: परं पुरुषशब्दवत् // एवं दान धन धान्य मित्र वस्त्र वसन वदन नयन पुण्य पाप सुख दुःखादयः / सर्वनाम्न: प्रथमाद्वितीययो: कुलशब्दवत् / सर्वम् / सर्वे / सर्वाणि / पुनरपि / अन्यत्र पुंलिङ्गवत् / अन्यशब्दस्य तु भेदः। नपुंसक लिंग से परे औ को 'ई' हो जाता है // 237 // कुल+ ई = कुले बना। कुल + जस्, कुल + शस् नपुंसक लिंग में जस् शस् को घुट संज्ञा हो जाती है // 238 // नपुंसक लिंग से परे जस् शस् को शि आदेश हो जाता है // 239 // यहाँ शकार सर्वादेश के लिये है अर्थात् श् का अनुबन्ध लोप हो जाता है एवं श के निमित्त से यह आदेश संपूर्ण विभक्ति को हो जाता है उसके एक अंश को नहीं अत: कुल+इ पूर्व के धुट् से परे नपुंसक लिंग की घुट् विभक्ति के आने पर 'नु' का आगम हो जाता है // 240 // तब कुल न् इ हुआ पुन: ‘घुटि चासंबुद्धौ' इस १७७वें सूत्र से अ को दीर्घ होकर कुलानि बना। संबोधन में कुल+सि ‘ह्रस्वनदीश्रद्धाभ्यः' इत्यादि सूत्र से सि का लोप होकरं हे कुल ! बना। आगे पुरुषवत् समझना। कुलम् कुले कुलानि / कुलाय कुलाभ्याम् कुलेभ्यः हे कुल ! हे कुले ! हे कुलानि ! | कुलात् कुलाभ्याम् कुलेभ्यः कुलम् कुलानि कुलस्य कुलयोः कुलानाम् कुलाभ्याम् कुलैः / कुले कुलयोः कुलेषु इसी प्रकार से दान आदि उपर्युक्त शब्द नपुंसकलिंग में चलते हैं। सर्वनाम संज्ञक शब्दों में भी प्रथमा द्वितीया विभक्ति में कुल शब्द के समान एवं तृतीया से सभी पुल्लिंग सर्वनाम के ही समान समझना। जैसेसर्वम् सर्वाभ्याम् सर्वेभ्यः हे सर्व ! . हे सर्वे ! हे सर्वाणि ! | सर्वस्मात् सर्वाभ्याम् सर्वेभ्यः सर्वम् सर्वाणि सर्वस्य सर्वयोः सर्वेषाम् सर्वेण सर्वाभ्याम् सर्वस्मिन् सर्वयोः सर्वेषु अन्य शब्द में कुछ भेद है। अन्य+ सि, अन्य+ अम् . कुलेन सर्वे सर्वाणि सर्वस्मै सर्वे सर्वैः