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________________ पृष्ठम् अशुद्धिः रुपत्वेन मत्रभेदेन सममि शुद्धिः रूपत्वेन मात्रभेदेन समभि स्यात् पटादा स्या पटा कि काञ्चनक्रिया किं 101 سلم निवृत्युपकरण प्रसङ्गात् कथंवैव तोल्यमेव रेक्त्वा दाहोत्पोदिका संकक्वचिदुद्भूत रूपादि परा भुत निष्ट पुरुषीय विष चालक मन्त्र तत्वज्ञा नाभावे लोपपत्तेः سے 104 104 काञ्चन क्रिया चेत्, न निर्वृत्त्युपकरण प्रसङ्गात् / कथं चैव तौल्यमेव रेकत्वा दाहोत्पादिकां सङ्कक्वचिदुद्भुत रूपादिपरा भूत . निष्ठ पुरुषीयविष चालकमन्त्र तत्वज्ञानाभावे लोपापत्तेः हेतु . तत्कालीन स्थानप्रीव्यात् ज्ञानवासनाया प्रसङ्गात् गीता अ०४-३७ इति गुणताया निरासः वस्तुधर्मो यथेष्टविनियोग प्रति कारण 105 106 107 108 तत्तकालीन स्थान ध्रौव्यात् ज्ञानात वासनाया प्रसंगत् गीता अ. 11 ति गुरगतायानिरासः स्तुधर्मों यथेष्ट विनियोग प्रतिकारण 114
SR No.004308
Book TitleNavgranthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages320
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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