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________________ तेरकाठीयार्नु स्वरूप प्राणो करें मिल्यो, नीचं घाली बेठौ / धरती सूंघवा मांडी, तिवार गुरुनो वाणी सांभलता अन्तराय नीपजाव्यौ, मोह राजानै पास में वडायै घबर कोधो, जे महाराज तुं मारा उंबरानी जीत थई. तिवारै मोह राजाई निद्रानै बगसोस कोधो जै चौद राजलोकनें विषई राजधानी करो, ते प्रमादना प्रभाव थकी चौदपूर्वधारी पूर्वकोडर्नु चारित्रने विषेरीने निगोद मध्ये जई उपना / श्री महावीर प्रभुजी इंम कृपा करो छइ जै 'समयं गोयम मा पमायए' // 1 // एहवं मनुष्यनु आयुधू डाभना अणी उपर पांणोनो बिंदु केतलो वार तकै ? एह, आयुषं मनुष्यतुं थोडु, एड्वू जाणोने प्रमाद परहरज्यो // एह निद्रा काठीयो // 3 // ... 4. अहंकार काठीयो जिम तिम निद्रा जोत्या, प्रभु सर्वज्ञ वाणी सांभलवा लागुं, एहवं मन कर्यु, तिवारि मोह राजाई 'अहंकार' नामई काठीयो चोर मोकल्यो, तिणे आवीनि सरीरमैं प्रवेश कीघो, तिवारें अहंकारे परवस कीधो, तिम ते मनमें एहवं उपर्नु ए गुरुइ आमनें आदर न दीधो, अम साहमुं जोयुं नहीं, धर्मलाभ दीधो नहों, अमने मान बहुत दीधो नहीं, आवो-बेसो एतलं पण कर्वा नहीं, आषी सभाइं पणि अमने आदर दोधो नहीं, अमने बोलाव्या नहीं, तेतला वास्ते ए गुरुने पासे हिवई जइसुं नहीं, ए वांण सांभल्या विना चलावस्युनी, एहवो अहंकार काठीई आवीने धर्मनी हाणि करावी, धर्मरूपीयो पजानो लुटी लीधो // एहवो चोथो काठीयो // 4 // 5. क्रोध काठीयो जिम तिम जीतीने वर्षाण सांभलवा बेठा छे. एतले मोह राजाई 'क्रोध' काठियाने मोकल्यो, तिवारें क्रोध सरीरमै प्रवेश कीधो, तिवारे क्रोध रूपणी अगनि गुण बालो नांष्या, क्रोध ते अगनि सरिषो, कोड वरसनी प्रीत ते षिणमें घेरू करी प्रीत नसाडई, पोते तपें परने तपाडे, आत्माना अवगुण उचाडे, स्वधर्म निछिवाडे-नां मोटी पाउँ विकलनी परे भांणि रूप रंगनि घटाउँ, पोतनुं बालें, परनु परजालें, पुष्टी(ष्टि) करे गाले, गुणवंतने मावतां वाले, पडे अनंती जंजालें, क्रोधनै देसवटों देज्यो आले(!) न समजे वचन सु हालें, भावोनि कोण टालें, क्रोधी धसमसतो चाले, क्रोधमैं हणज्यो इणलें, पूव कोडना चारित्रने गालें, दुर्गति सामु भाले. च्यार जणा संसार मध्ये आंधना छै-मोहांध (1) लोमांच (2) क्रोधांध (3) विषयांध (4) ए च्यार मांधला कहीइं। ए गुरु पासे कोण आवै, इहां तो अमारो दुसमन आवे छे, एहवो क्रोध करीनि काठीयो चोर चोरी करई, धर्म करवा न धैजी, जिम तिम करीनि पहनें जीत्या // 5 //
SR No.004308
Book TitleNavgranthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages320
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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