________________ विचारबिन्दुः "धम्मिएहिं अठेहिं हेउएहिं पसिणेहिं णिप्पिट्ठपसिणवागरणं करेह"[ ] मंखलिपुत्रनई उद्देशीनइ स्थविर प्रति भगवंति तिहां इम कहिंउ छई, ते हवे स्थिरवचनि तेहनइ महापरिताप ऊपनो छइं [ ] // 32 // 'अवण्णवायं पडिहणेज्जा' [ ] ए दशाचूर्णि वचन आचार्यशिष्यनई परवादिनिराकरणसामर्थ्यमात्र देखाडवा ज कहिउं छई, पणि एहवी आज्ञा साधुनि न होइ एहवू कोइ कहइ छइ ते छेदखंडकलंपाकसदृश जाणवो जे माटि-इम अपवादविधि सर्व विशीर्ण थाई // 33 // अपवादिं आदेशनिषेध अनि पंचिंद्रियव्यापादन भयथी छती समर्थाइ प्रवचनाहितनइ अनिवारई दुर्लभबोधिता इम को कहइ छइं, ते परस्परविरुद्ध; जे माटि-सामान्यनिषेधजनितभय विशेषइ अपवादनी आज्ञा विना न टलई // 34 / ! / ___अहित निवारण करतां पंचिंद्रियव्यापत्ति प्रायश्चित्तथी ज शुद्धता होइ इम कोइ कहइ छइ, तेणइ ____ "मूलगुणप्रतिसेव्य आलम्बनसहितः पूज्यः पुलाकवत् स हि कुल्पादिकार्ये चक्रवर्तिस्कन्धावारमपि गृह्णीयाद्विनाशयेद्वा न च प्रायश्चित्तमाप्नुयात्"[ ] ए बृहत्कल्पवृत्तितृतीयखंडे वचन विचाटुं // 35 // अपवादविराधनाइं जे किहां एक प्रायश्चित्त कहिउं छई, तेः हस्तशतबहिर्गमनादिकनी परि निरतिचारता ज अभिव्यंजइ यतः-- आयरिए गच्छंम्मिय, कुल गण संघे य चेइयविणासे / आलोइयपडिक्कता, सुद्धो जं निज्जरा विरला // 1 // [सं.२९६३] // 36 // 'जलं वस्त्रगलितमेव पेयम्' [ ] इहां जल गलनज उपदिष्ट छइं, पणि गलित जलपान नहीं, इम कोइ कहइ छइ,तेणई'उस्सिचण गालण धोअणे य' [ ] इत्यादि आचारांगनियुक्ति वचनथी जलगलन पणि शस्त्रविचारीनई तेहनो उपदेश पणि किम कहिवो // 37 // द्रव्यथी पणि हिंसाई एकन्द्रियादिकनी परि सूक्ष्मदोषइ आलोचना आवइ इम कोइ कहइ छह ते जूटुं, जे माटि-इम कहतां द्रव्यपरिग्रहथी पणि आलोचना थई जोईई, ते माटि 'दुव्वओ रिक्तओ' इत्यादि वनिं द्रव्याघालंबनई अशुभ भावनुं ज प्रत्याख्यान सदहवं, अत एव दिगम्बर निराकरणई-- "अपरिग्गहया सुत्तेत्ति जा य मुच्छा परिग्गहोऽभिमओ सव्वदव्वेसु ण सा कायव्वा सुत्तसम्भावो" गा०. सं. 2580] इम विशेषावश्यकई कहिउं छई // 38 //