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________________ उपाध्याययशोविजयविरचित एव संविग्नपक्षताई पार्श्वस्थतादिक दोष अस्फुट थाई, ते वारइं तेहना गुण चारित्रियानी परि सर्वनइ अनुमोदवा योग्य शास्त्रि सिद्ध छई // 29 // . पुण्यप्रकृतिहेतु अनुमोदनीय कहिइ तो व्यंतरत्वहेतु बालमरणादि तथा होइ / पुण्योदयप्राप्त अनुमोदनीय कहिइं तो, चक्रीनइ स्त्रोरत्नोपभोग तथा होइ / सभ्यक्त्वनिमित्त मात्र अनुमोदनीय कहिई तो अकामनिर्जरादि तथा होइ / धर्मबुद्धिं क्रियमाण अनुमोदनोय कहिई तो याज्ञीयहिंसा तथा होइ, ते माटि सम्यक्त्व सहितज अनुमोदवा योग्य इम कोइ कहई छई ते नहीं, जे मार्टि....आदि धार्मिक योग्य कुशलव्यापारपणि अनुमोदनीय कहिया छई तथाहि "सव्वेसिं जीवाणं होउ कामाणं कल्लाणसयाणं मग्गसाहणजोए........अणुमोएमित्ति पंचसूत्रे / [सू०.१] "अहवा सव्वंचिय वीमरायवयणाणुसारि जे सुकड [य] / -चतु:शरणे [58] ___सेसाणं जीवाणं दाणरुइत्तं सहाविणयत्तं / तह पयणुकसाइत्तं परोवयारित्तभक्तं // 1 // दुक्खिण्णदयालुत्तं पियमासित्ताइविविहगुणणिबहं / सिवमग्गकारणं जं तसव्वं अणुमय मज्ज्ञ // 2 // -आराधनापताकायाम् [ ] // 30 // सम्यग्दृष्टिज क्रियावादी शुक्लपाक्षिक होइ, पणि मिथ्यादृष्टि नहि, इम कोइ कहइ छई ते जूढुं, जे मार्टि दशाचूणिई कहिउं छह ___“जो अकिरियावाई सो भविभो अभविओ वा णियमा अभविभो भविओ णियमा कण्हपक्खिओ किरियावाई णियमा भविमो णियमा सुक्कयपक्खिओ अंतो पुग्गलपरियट्टस्स सिज्ज्ञिहित्ति सम्मदिट्ठी वा मिच्छादिट्ठी वा होज्जत्ति // [ ] किहांइक अपार्धपुदलावर्ती ज शुक्लपाक्षिक कहिओ छई ते शुक्लपाक्षिक सम्यक्त्वप्राप्ति वखाणवो, अनइ दशामध्ये ते मार्गानुसारिभावइज इम 2 ग्रंथनो अविरोध जाणवो, अत एव'सम्मदिदी किरियावाई, मिच्छा य सेसगा वाई' इत्यादि सूत्रकृतांग चूर्णि प्रमुख ग्रन्थ मध्ये कहिलं छई, तिहां पणि क्रियावादि विशेष लेवो, क्रियावादि सामान्यनइ. ते दशाणि मध्ये काल कहिओ छई तेहज जाणवो // 1 // मिथ्यादृष्टिनो सकामनिर्जरा न होइ इम कोइ कहई छई, ते जूटुं जे-मोक्षाशयथी निर्जरा. "ते मार्गानुसारीनइ अंशथी सकाम कहिई,
SR No.004308
Book TitleNavgranthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages320
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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