________________ उपाध्याययशोविजयविरचितं / तत्तो विणिग्गया वि हु, ववहारवणस्सयंमि णिवसंति / कालमणंतपमाणं, अणंतकायाइभावेणं // 2 // ___पुष्पमालाबृहद्वृत्तौ [ ] अव्यवहारिकराशौ, भ्रमयित्वाऽनन्तपुद्गलविवर्त्तान् / व्यवहृतिराशौ कथमपि, जीवोऽयं विशति तत्राऽपि // 1 // बादरनिगोदपृथिवी-जलदहनसमीरणेषु जलधीनाम् / सप्ततिकोटाकोटयः, कायस्थितिकाल उत्कृष्टः // 2 // - धर्मरत्नप्रकरणवृत्तौं / [ ] निगोदा एव गदिता जिनैरव्यवहारिणः / सूक्ष्मास्तदितरे जोवा-स्तेऽन्येऽपि व्यवहारिणः // 1 // -संस्कृतनवतत्त्वसूत्रे / [ ] एहवां वचन देखीनइ जे वचनमांहि अनाभोग कहिइ छई ते पूर्वाचार्यनी मोटी आशातना करई छई. // 6 // जमालिनइ अभिनिवेशमूल अभिनिवेश कोइक कहइ छई न सद्दहवु, ते जे माटई मइभेएण जमाली पुष्वग्गाहिएण गोविंदो / संसग्गि सावग भिक्खू गोट्ठामाहिलअभिणिवेसे // 1 // [6-268] ए व्यवहारभाष्यनइं वचन पूर्वई तेहनइ मतिभेद मिथ्यात्व जणाई छई // 7 // अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व आभिग्रहिक सरिखं भारे, एह, कोइक कहइ छई ते जूस्टुं जे . मार्टि सर्वान् देवान्नमस्यन्ति नैकं देवं समाश्रिताः / जितेन्द्रिया जितक्रोधा दुर्गाण्यतितरन्ति ते // 1 // [सं० 118] इत्यादिक योगबिंदु वचनइ अनुसारइ, आदिधार्मिकनई अनाभिग्राहिकमिथ्यात्वगुणकारी जणाई छई॥८॥ सम्यक्त्वालापकमध्ये अन्यदेवाधर्चन निषिद्ध छई, ते माटई मार्गानुसारिनई पणि ते गुणकारि न होइ इम कोइक कहइ छई ते जुळु; जे माटई उत्तरभूमिकाइ निषिद्ध, पणि पूर्व भूमिकाइ आशयविशेषइं श्राद्धनइं जिनार्चानी परि गुणकारी ज. संभवइ // 9 // कोइक कहइ छइ जे मार्गानुसारिपणुं पणि अजाणताइ जैनधर्माचरणई ज होइ पणि अन्यधर्माचरणइ न होइं, ए एकान्त न धारवो, जे माटइ योगबिंदुमध्ये कहिउं छइ