________________ अर्शोध्नः सूरणः पुंसि कन्दश्चाकमस्त्रियाम् / कर्कोटकादयः पुंसि मूलकं पुनपुंसके // 176 // हरिपर्णादिकं क्लीबे शष्पं रौहिषमस्त्रियाम / कर्तृणं क्लीबलिंगे स्यात् कुशो बर्हि नडोऽस्त्रियाम् // 177 // दर्भ-कुथादयः पुंसि दूर्वादयः स्त्रियामपि / पोटगलादयो मत्र्षे मुस्ता त्रिषु च पूलकः ( उलपः) // 178 // बल्वजाः भूम्नि पुल्लिगे भाष्यकारस्तु बल्वजः / इक्षु-प्रभृतयः पुंसि काशः स्यात् पुनपुंसके // 179 // इषीका स्यात् स्त्रियां घासः पुंसि क्लीवेऽथवा मतः / तृणं विषो रसश्चैव गरलोऽपि हलाहलः // 180 // . . . कालकूटस्तु काकोल इमे पुंक्लीबभाषकाः / अहिच्छत्रादयो पुंसि दालवान्ता-सदारदाः // 181 // एते सर्वेऽपि पुल्लिंगे मिश्रा एवं वदन्ति च / अमरः पुंसि वा क्लीबे विषभेदान् मिथोऽवदत् // 182 // . नीलंगु-त्रितयं पुंसि कीटः स्त्रीपुंसयोरपि / पुलकाः कीकसाः काष्ठकीटो घुणादयो नरि // 183 // स्युः भू-लतादयो नार्या भूम्नि स्त्रियां जलौकसः / , अस्रपाः पुंसि नार्या वा मुक्तास्फोटो नरे पुनः // 184 // स्त्री शुक्तिः कंबुशखौ द्वावस्त्रियामथ वारिजः / त्रिरेखः षोडशावर्त्तः शंखनकाश्च क्षुल्लकाः // 185 // शम्बूकाश्चेह पुल्लिगे हिरण्यः कपर्दे पुमान / स्वर्णेऽस्त्रियां हिरण्यश्च पणास्थिकश्च मानवे // 186 // पुंस्त्रीलिंगे समाख्याती कर्पदक-वराटको / स्त्रियां टापि च दुर्नामा क्लीबे दुर्नाम कश्चन // 187 // दीर्घकोशा स्त्रियां वाच्या पिपीलकस्तु पुस्त्रियोः / पिपीलिकादयो नार्थी पुल्लिगे मत्कुणादयः // 18 // महाभीरुयुता एते पुस्त्रियोवृश्चिकः द्रुणः / कर्णजलौका तु कर्णकीटा शतपदी स्त्रियाम् // 189 // आली पुंसि तथा चालिरलं भवेन्नपुंसके / पुस्त्रियोर्धमराद्याश्च षडंदि षट्पदो नरे // 190 //