________________ 34] सरः क्लीवे तथा खेयंः परिखाः खालिका स्त्रियाम् / / आवालं स्वमते क्लीबे आवालः पुंसि कश्चन // 116 // आवापाऽऽधारबन्धाश्च निर्झरस्तु झरः स्रवः / . उत्सः पुंसि सरिः नार्थी प्रस्रवणं नपुंसके // 117 // इत्यपकायः // अप्पित्तवर्जिता सर्वे सि वहन्यादयो मताः / / अप्पित्तं क्लीवलिंमे स्वात्त कुकूलो बाष्पमस्त्रियाम् // 118 // उष्मा पुंसि स्त्रियां हेतिः कीला ज्वालकणो द्वयोः / अर्चिः स्त्रींक्लीक्योरत्र स्फुलिंगस्त्रिषु भाषितः // 119 // अलातमुल्मुकं क्लीवे चांगारः पुनपुंसके / स्त्रियां स्तरीस्तडिद विद्युद् अशनिः क्लीबवर्जितः // 120 // . ऐरावती चला शम्पाऽचिरप्रमादयः स्त्रियाम् / ... वायुप्रभृतयः शब्दाः पुंसि झञ्झा स्त्रियामिह // 121 // वायुभेदे समानश्च पुक्लीबलिंगवाचकः / अथ वनस्पतेरथाधिकारो लिख्यते मया // 122 // अरण्यं षण्ड-कांतारे अस्त्रिया-मटवी स्त्रियाम / अरण्यानी महत्त्वे स्त्री सूत्रषट्कं नपुंसके // 123 // . , कश्चिद् वनी स्त्रिवामाह पुल्लिगे झषपञ्चकम् / वन चापोषसंयुक्तं वेलं चात्र नपुंसके // 124 // आरामो निष्कुटश्चापि पौरकस्तु नरे त्रयः / / आक्रीडः पुनरुद्यानं भवेन्नरनपुंसके // 125 // वाटी त्रिषु समाख्याता सद्रारामश्च स्वपि / वृक्षाद्याः पुष्पान्ताः हि पुल्लिगे शाल्मलि ईयोः // 126 // अस्त्री कुजो निकुंजश्व कुडंग-पंचकं मरे / ..... फलवन्ध्यादयः पुंसि कलीप्रान्ता मता विषुः // 127 // ओषधिसैषधीश्चैव प्रततिर्बततिलता / / विरुद् गुस्मिन्यपि स्त्रीत्वे पुंसि क्लीवेऽथ चोलपः // 128 // अस्त्रियामंकुरांकूरी प्रोह-मामलं नरे। . बलिशं क्लीबलिंमेऽपि स्त्रियां शिखादयः पुनः // 129 // पुमान् स्कन्धः प्रकायद्योऽस्त्री. बटा शिकाः च योपिति / स्तम्बो ना विटपो गुल्मः शिखरं मूलमसियाम् // 230 //