________________ महोदयो महानन्दः सर्वदुःखक्षयः पुनः / मोक्षोऽपुनर्भवश्वापवर्गोऽमीपुसिकीर्तिताः // 10 // सिद्धिस्तु निर्वृतिर्मुक्तिः स्त्रीलिङ्गो बह्म चास्त्रियाम् / . कैवल्यममृतं श्रेयः शिवं निश्रेयसं किल // 11 // निर्वाणमक्षरं चैव निर्याणं तु नपुंसके / निर्ग्रन्थः श्रमणः साधुमुंनिस्तु पुस्त्रियोरमी // 12 // ऋषिर्यत्यादयः पुंसि सरिषयः स्त्रियामृषी। . पुंक्लीबे मौनमादिष्टं धर्मशास्ता गुरुः पुमान् // 13 // गुरुस्त्रिषु महत्यर्थे करणं स्त्रीनपुंसके। आसनं मङ्गलं क्षेममेते पुंक्लीबवाचकाः // 14 // स्वश्रेयसादयोऽप्यन्ये यदा कल्याणवाचिनः / तदा नपुंसके प्रोक्ता तवद्वतिषु त्रिषु स्मृताः // 15 // शेषाः शब्दाश्च काण्डान्ताः सन्दिग्धलिङ्गवर्जिताः / विज्ञेयाः विबुधैः प्रायो यथोक्त लिङ्गभाषिणः // 16 // इतिप्रथमकाण्डोक्तः सन्दिग्ध लिङ्गनिर्णयः / लिखितः स्मृतये नित्यं कल्याणोदधिसूरिणा // 17 // इति प्रथमकाण्डोक्त लिङ्गनिर्णयः समाप्तः / अथ द्वितीयकाण्डस्य लिंगनिर्णयो लिख्यते स्वर्गः पुंसि दिवं स्वर्गे त्रिविष्टपं नपुंसके। धौ दिवौ च भुवि नार्या तविषस्ताविषः पुमान् // 1 // स्वर्गे गौः पुंस्त्रियोरत्र नाकस्त्रिदिवमस्त्रियाम् / सुरलोकोर्वलोकौ द्वावेतौ पुंसि स्वरव्ययम् // 2 // पुंक्लीबे दैवतं प्रोक्तं स्त्रीलिंगे देवता मता / पुंल्लिङ्गे गदिताः प्राज्ञैरपरे देववाचिनः // 3 // तेषां यानं विमानोऽपि भूतास्तु पुनपुंसके / पीयूषममृतं क्लीबे सुधा स्त्री देवभोजनम् // 4 // चतुर्विधा असुराद्याः विनैकं पुंसि कीर्तिताः / आदित्यप्रमुखाः पुंसि समगाऽस्त्री तरणियोः // 5 //