________________ 38 ] महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम् [ श्रीसुमतिजिन मा विषीद तवाभीष्टं करिष्ये प्राणनायिके / प्रसाद्य सद्यः पूजाभिः कुलदेवीं वरार्पणात् // 17 // देव्याः स्थानमथाविश्य तत्त्यक्त्वाऽनं सपानकम् / राजोपवासे षष्ठेऽभूत् कुलदेवी बरोन्मुखी // 18 // भाग्यसौभाग्यभोगावैर्भावी तव सुतः श्रुतः / सर्वोत्कृष्टः स्पष्टतेजास्तुष्टस्तस्या गिरा नृपः // 19 // ऋतुस्नाता राजपत्नी गर्भमाधत्त सोत्तमम् / देवः कोऽपि दिवश्च्युत्वाऽवतीर्णः शीर्णपातकः // 20 // दृष्टः स्वप्ने सिंहशिशुः प्रविशन् वदनोन्मुखः / राज्ञे तत्कथने पुत्रो भावी सिंह इवेत्यवक् // 21 / / पूर्यमाणे दोहदेऽस्याः पुत्रस्तु समयेऽजनि / महोत्सवान्नाम पित्रा दधे पुरुषसिंहकः // 22 // तस्योद्भवे दयाघोषः प्रतिस्थानं जिनार्चनम् / विदधेऽष्टाहिकां यावत् प्रतिचैत्यं महीपतिः // 23 // ननन्द नन्दनो नन्दने कल्पशाखिवत् / __ लताभिरिव सोऽष्टाभिः कन्याभिः स परीवृतः // 24 // एकदा वनशोभार्थी तत्रागान्नृपनन्दनः / दृष्ट्वा हष्टस्तत्र सूरिं नाम्ना विनयनन्दनम् // 25 // तद् वन्दने ददौ सूरिधर्मलाभाशिषां वराम् / पृष्टोऽनेन मुनिश्चित्रं नवे वयसि यद् व्रती // 26 // विषया विषवत् त्याज्या इति मन्ये भवादृशाः / नैपुण्यभाजोऽव्याजेन तत्यजुस्तान मनीषिणः // 27 // संसारतारणोपायं वद कोविद साम्प्रतम् / कुमारेणेति भणिते दीक्षाशिक्षा गुरुर्जगौ // 28 // सावद्ययोगत्यागेनासावेकधा द्विधा पुनः / देशतः सर्वतस्वैधा ज्ञानदृक् त्यागभेदतः // 29 // चतुर्धाज्ञानदृक् त्यागतपसां च विकल्पतः / पञ्चधा सोदिताऽहिंसा सूनृताऽस्तेयमीलनात् // 30 // ब्रह्म किश्चन भेदेन पोढा षट्कायरक्षणात् / चतुः कषायदण्डाख्यत्रयत्यागेन सप्तधा // 31 // अष्टधा गुप्तिसमितिसंसर्गानवधा तथा / पश्चाश्रवाद्विरतियुक्चतुःकषायनिर्जयात् / 32 / / संसारतारणोपाय उत्तराध्ययने श्रुतः / तस्यैव मोक्षमार्गत्वात् दीक्षामोहव्यपोहकृत् // 33 //