________________ चरितम् ] लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् [ 21 अजितस्वामिसगर क्रचरितम् जयवानजितः स्वामी शिवगाभी शिवाय नः / शिवायनं तवरितं त्वरितं वच्मि साम्प्रतम् // 1 // जम्बूद्वीपमहीपस्य तलं दक्षिणपाणिनम् / भरतक्षेत्रनाम्नाऽऽसीत समुद्रवलयाङ्कितम् // 2 // तत्राऽभूदजितो देवः स प्राग् जन्मनि दक्षिणे / तटे सीतामहानद्या विजये वत्सनामनि // 3 // सुसीमा नगरी नाम्ना विमुक्ता पापतापतः / जिनचैत्यध्वजैश्छायामनायासेन बिभ्रती // 4 // नृपोऽस्यां विमलः की| नाम्ना विमलवाहनः / ज्ञाता दाता भयात् त्राता पाता नीत्या च नित्यशः // 5 // गृहीधर्मे राजधर्मे मोक्षधर्मेऽप्यनुत्तरे / तद्गौणवर्णने मुख्या वृत्तिरेवाऽन्ववर्तत // 6 // संसाराऽसारताऽनेनऽनेनसा भाविताऽन्यदा / इन्द्रजालमिवाबोधि चोधियोगाजगत्त्रयम् // 7 // दैवात् तदैवाऽप्यायासीद् नाम्नाऽरिदमनो मुनिः / / तं वन्दितुं नन्दितुं स्वं गुणैर्भूपोऽप्यगाद्वनम् // 8 // प्रारेभे देशनां मूरिभूरितत्त्वविमर्शनैः / भारती स्वामलङ्कुर्वन्नुज्ज्वलाननवाससा // 9 // अधर्मः सर्वथा त्याज्यो ग्राह्यो धर्मो हि धीमता। ___ सार्वपार्षदमित्येतत् राजन्यायोऽत्र साक्षिकः // 10 // अन्यायी विषयाद्रेऽपसार्यस्त्वार्यशासनैः। न्यायचारी पुरस्कार्यः स्मार्यों राम इवान्वहम् // 11 // व्यलीकं विप्रियं कुर्वन्नुवर्णशेन निषिध्यते / बाध्यते चौर्यकृत् क्रौर्यकर्मा शर्माऽस्य दुर्लभम् // 12 // अकृतेऽप्येनसि ध्यानात् तन्दुलो नरकंगमी / लेभे केवलितां धर्मध्यानाद् भरतचक्रभृत् // 13 // श्रुत्वेत्यादिवचः सूरेद्र्रैनसोऽभवत् / साम्राज्यं तनये न्यस्य प्रव्रज्यामाददे नृपः // 14 // त्यजन् स समितीः सर्वाः समितीर्धामिकीर्दधौ / . . विहाय गुप्तिनिक्षेपं परे स्वं गुप्तिषु न्यधात् // 15 // एकावल्यादि विविधं तपस्तप्त्वा महामनाः / प्रान्तेऽनशनतः प्राप विजयानुत्तरस्थितिम् // 16 // " अपूर्याऽऽयुः क्रमाच्च्युत्वा भरतान्तरवातरत् / जितशत्रुमहीनाथपुत्रत्वेन सुरोत्तमः // 17 //