________________ 22 ] .. महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम् . [ श्रीअजितस्वामिसगरचकि- . विनीतायां महापुर्या भूपा ऋषभवंशजाः / आसन् सिद्धिंगता संख्याऽतीताः सर्वार्थसिद्धिगाः // 18 // जितशत्रुरपि क्षमापस्तद्वंश्यः तत्प्रिया प्रिया / विजयानामभृत् साक्षाद् विजयाख्या सुराङ्गना // 19 // तद्रूपप्रतिरूपत्वे शची साचीकृतानना / कमला कमलङ्कारं न दधे सुषमाविधौ // 20 // मुखाद्यवयवैस्तस्या विजितं कमलं किल / चरणौ शरणीचक्रे रेखोल्लेखादधःस्थितम् // 21 // देवेऽवतीर्णे तत्कुक्षौ देवी देवीजनाश्रिता / राधशुक्लत्रयोदश्यां रोहिणीधिष्ण्यगे विधौ // 22 // प्रभोः प्रभावान्नरकेऽप्यङ्गिनां स्यात् क्षणं सुखम् / देवी चतुर्दशस्वप्नान् ददर्श प्रहरेऽन्तिमे / / 23 // ज्ञात्वाऽवतारं देवस्य समीयुः सुरनायकाः / त एवं तत् स्वप्नफलं जगदुर्जगदुत्तमम् // 24 // द्वैतीयीको जिनो भावी तव सुन्दरी ! सुन्दरः / इत्युदित्वाऽष्टमद्वीपं तदा प्राप पुरन्दरः // 25 // चतुर्भिः कुलकं जितशत्रुर्नुपभ्राता सुमित्रविजयाह्वयः / तद्भार्या वैजयन्त्यासीद् यशोमत्यपराह्वया // 26 // तयाऽपि दृष्टास्ते स्वप्नाश्चतुर्दश गजादयः / फलमेषां चक्रधरो भावीत्यवादि भूसुरैः // 27 // ततो नवसु मासेषु दिनेष्वर्धाष्टमेषु तु / गतेषु माघमासस्य शुक्लाऽष्टम्यां शुभे क्षणे // 28 // ग्रहेषूच्चस्थितेष्वृक्षे रोहिण्यां गजलाञ्छनम् / असूत विजया सूनुं पुण्यं सुकृतं वागिव // 29 // तस्यां रात्रावनुजिनं वैजयन्त्यपि दारकम् / प्रास्त स्वर्णवर्णाङ्ग सुमित्रविजयाङ्गना // 30 // तत्रोत्सवे प्रतिपदं ननृतुर्गणिकागणाः / ववृषुहर्षतः स्वर्णरूप्यवस्त्रमणीन् सुराः // 31 // अर्चा विचक्रिरे चैत्ये तथाऽर्हद्विम्बसञ्चये / * निर्घोषोऽजनि तूर्याणां सूर्याणामपि तुष्टये // 32 // उत्सवो दिक्कुमारीणां गोत्रारीणां यथागमम् / जातख्यातस्त्रिभुवने स तु वाचामगोचरः // 33 // अत्र सर्वत्र देवानां घण्टानादेन सङ्गमः / शास्त्रान्तरे तु तद्भेदस्तं वेद जगतां गुरुः // 34 // तदुक्तम्-संखेण भवणवासी वंतरिया तह य पडहसद्देणं / ___ घण्टाए वेमाणिय जोइसिया सिंहनाएण // 35 // अत्रैवं स्यात् समाधानं घण्टानादो हि जन्मनि / अन्यत्र देवसमितौ शङ्खादीनां प्रयोजनम् // 36 //