________________ चरितम् ] लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् [9 युगलापत्यभावेन ब्राह्मया सह च चाभवत् / अन्यान्येकोनपञ्चाशत् सुषुवे युगलान्यसौ // 133 // सुनन्दा बाहुबलिनं सुबाहोर्जीवमुत्तमम् / अजीजनन्महापीठजीवं सा सुन्दरी पुनः॥१३४॥ मिथः कलिं विदधानाः वृषभं प्रभुमाश्रिताः। युग्मिनः प्राहुर्भपालं समादिशतु नीतये // 135 // [ याचध्वं भूपति नाभिं स वो दास्यति भूपतिम् ] / नाभिराजोऽप्यवोचद् वो राजाऽस्तु ऋषभस्त्विति // 136 // ततः शक्रोऽप्यवधिनाऽवसरज्ञः समेत्य सः। राज्याभिषेकं विदधे विभूष्याऽऽभरणांशुकैः // 137 // सिंहासने चोपविष्टे प्रभौ युगलिनो नराः / जलार्थ [ हि गताः ] पूर्व सरसस्तेऽप्युपागताः // 138 // सालकारं प्रभुं दृष्ट्वा पादयोचिंक्षिपुर्जलम् / तद्वीक्ष्य विनयाधीनं हरिर्धनदमूनिवान् // 139 // विनीता नगरी नव्यां विधेहि स्वर्णगेहिनीम् / ' दीर्घा द्वादशयोजन्यां नवयोजनविस्तृताम् // 14 // तन्निर्माणे प्रभुश्चक्रे हयहस्त्यादिसङ्ग्रहम् / उग्रा भोगाश्च राजन्याः क्षत्रियाः स्थापिताः पुरम् // 141 // चतुष्पयाँस्तथा चक्रे रत्नस्वर्णादिपूरितान् / संख्ययाऽशीतिनाम्नाऽत्र चतुरन्विततया तया // 142 // विशति पूर्वलक्षाणां कुमारत्वे व्यतीत्य सः। त्रिषष्टिलक्षपूर्वाणां साम्राज्यमदधात् विभुः // 143 // द्वासमतिकलाः पुंसां लेखनाध्ययनात्मिकाः / चतुःषष्टिकलाः स्त्रीणां भगवान् समुपादिशत् // 144 // . अष्टादश लिपेर्भेदाः हंसलिप्यादिकाः समे / ब्राह्मयापसव्यहस्तेन दर्शिता गणितं ततः // 145 // सुंदर्या वामहस्तेन दर्शितं विधिसंयुतम् / शिल्पं पञ्चविधं कुम्भ, लोह, चित्रकरास्तथा // 146 // ततः कर्मशतं सिद्धं महतश्चोपदेशतः / आचार्यस्योपदेशेन विना जातं न कर्म तत् // 147 // त्रि. 2