________________ चरितम् ] लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् [निजपुत्र्यां हि तद् ] रागबन्धे ज्ञातेऽथ चक्रिणा / [भूरिद्रव्यव्ययं कृत्वा ] विवाहः कारितस्तयोः // 53 // प्रत्यावृत्त्यागते वज्रजंघे राज्ये निवेशिते / स्वर्णजंधोऽप्यधादीक्षां शैक्षं जग्राह सद्गुरोः // 54 // राज्यसुखं तया सार्द्ध भुजानस्य कियानपि / कालोऽगाद् भुक्तभोगाढयं रात्रौ चैवमचिन्तयत् // 55 // प्रातय॑स्य सुते राज्यं [ ग्रहीष्ये व्रतमुत्तमम् ] | विषधूमप्रयोगेण पुत्रेणासौ तदा हतः // 56 // स्त्रिया सह ततो [ मृत्वोत्तरकुरौ] च युग्मिनौ / त्रिपल्लयायुस्त्रिगव्यूतौ [समौ ] देहौ बभूवतुः // 57 // मृत्वा सौधर्मकल्पे ताववतीौँ भवेऽष्टमे / ततश्च्युत्वा विदेहान्तर्जम्बूद्वीपेऽवतेरतुः // 58 // क्षितिप्रतिष्ठितपुरे सुविधेभिषजः सुतः / आनन्दनामा भगवज्जीवोऽभून्नवमे भवे // 59 // तत्रैव जीवः, श्रीमत्या ईश्वरश्रेष्ठिनः सुतः / केशवाभिधया जज्ञे छित्त्वा स्त्रीवेदकर्म सः // 6 // चत्वारस्तद्दिने चाऽपि पुत्रास्तत्रैव जज्ञिरे / राज्ञः प्रसन्नचन्द्रस्य सुतो महीधराभिधः // 61 // सुनासीरस्य पुत्रोऽभूत् सुबुद्धिर्मन्त्रिणः पुनः / गुणाकरो धनश्रेष्ठिपुत्रः सार्थपतेरपि // 62 // सागरस्य पूर्णभद्रः षट्जीवा मित्रतां गताः / रमन्ते भुञ्जते सत्रा तिष्ठन्ति च सुशेरते // 63 // [गुणाकरस्तत्र दैवात् ] कुष्ठिकृमिविमिश्रितः। साधुरगाद् राजपुत्रः प्राहानन्दं सुहृच्छृणु // 64 // एवं कुरु मुनिसुखं तेनोक्तं नौषधद्वयम् / गृहेऽस्ति येन गौशीर्षचन्दनं रत्नकम्बलम् // 65 // लक्षपाकं तु तैलं मे ततः सम्भूय ते गताः / वृद्धस्य वणिजो हट्टे प्राहुर्द्रव्यं गृहाण भोः // 66 // देहि वस्तुद्वयं येन नीरोगं कुर्महे मुनिम् / पृष्टास्ते वणिजा दत्त्वा चन्दनं रत्नकम्बलम् // 67 // मुनिप्रयोजनं मत्वा नाऽग्रहोद् वस्तुनोर्धनम् / धर्मार्थकृत् स्वयं दीक्षां लात्वा मोक्षं वणिग् ययौ // 68 // तैलाभ्यंगे मुनेरङ्गे क्रियमाणे विचेतनः / मुनिस्तत्कृमयः सर्वे निर्गता आकुला बहिः // 69 // आच्छाध वैधः स मुनि रत्नकम्बलवेष्टनात् / कृमयः कम्बले लग्नाः क्षिप्तास्ते गोकलेवरे // 7 // गोशीर्षचन्दनं लिप्तस्थापिते विजने मुनौ / एकाभ्यङ्गे तत्कृमयो गता मांसतटे स्थिताः // 71 // द्वितीयेऽपि तृतीये चाभ्यङ्गे सर्वे विनिर्गताः। संरोहिण्या तव्रणा [नां] साधोः समाधिमादधुः // 72 //