________________ 4] महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम [श्रीऋषभदेव-. तस्य षट् पुत्रिकाः पूर्व सप्तम्येषाऽप्यजायत / तदुःखदग्धो नंष्ट्वैव पिता देशान्तरं ययौ // 38 // मात्रा संवद्धिता नामाऽप्यस्या. जातं न किञ्चन / निर्नामिकेति [ ना ] मेयं परकर्माण्यचीकरत् // 39 // एकदा धनिनां गेहे शिशून मोदकधारिणः / दृष्ट्वा साऽप्यर्थयामास मोदकं मातुरन्तिके // 40 // तयोचे ते पिता देशान्तरे गतोऽस्ति साम्प्रतम् / आनेष्यति तदा तुभ्यं दास्यामि गुरुमोदकम् // 41 // साम्प्रतं याहि शैलान्तः काष्ठान्यानय सा ततः / गता शैले केवलिन युगंधरमुनि नता // 42 // केवलज्ञानिनस्तत्र महिमानं सुरोत्तमैः / क्रियमाणं च तं द्रष्टुं गता साऽपृच्छदञ्जसा // 43 // ममावस्था किमीक्षा मुनिराख्यदधर्मतः / तदुक्त्या सापि सम्यक्त्वं जग्राहोपाश्रये स्थिता // 44 // तपः करोति सा बाढं धर्मिणीति प्रतिष्ठितः [ ता] / ललिताङ्गसुरस्तस्मै मोहनं स्वमदर्शयत् // 45 // तथा कु [ क ]तेऽथ देवेन ललिताङ्गेन धर्मिणी / कृत्वा निदानं तपसा देव्यभूत् सा स्वयंप्रभा // 46 // तया समं यथायुष्कं भुक्त्वा भोगान् ततश्च्युतः / जम्बूद्वीपे प्राग्विदेहे विजयः पुष्कलावती // 47 // ततः पुर्या पुण्डरीकिण्यां स्वर्णजंघनृपात्मजः / / स्वणजघनृपात्मजः / वज्रजंघोऽभवत् साऽपि स्वयंप्रभा दिवश्च्युता // 48 // पुत्री जज्ञे वाज्रसेनी सखीभिः संयुताऽन्यदा [ तदा] / ___ गवाक्षे संस्थिताऽपश्यन् मुनि केवलशालिनम् // 49 // देवागमनमालोक्य जातिस्मरणमागता / प्राग्भवेशविवाहाय पढेंमेकं व्यलीलिखत् // 50 // धात्री गता करे लात्वा तं पटं राजसंगमे / लोहार्गलात् समायातो वज्रजङ्घो ददर्श तम् // 51 // तत् पट्टलिखितं वृत्तं पश्यन् जातिस्मृति भजन् / तुष्टं प्राग्भवभामिन्याः [स्मृत्वा सोऽपि कथां वराम् ] // 5 //