________________ चरितम् ) लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् [ 259 पुनः पुना राजकार्यपृच्छायां गमनागमैः / .. चुलनी नलिनीवासीद् रागभाग् मदनोदयात् // 35 // अनयोरनयोन्मादं तनयोऽपि विदन्नयम् / स्पष्टीचक्रेऽत्र दृष्टान्तात् काकहसीरतादिना / 36 / वर्णसङ्करसंयोगात् तत्तद्वधमदीदृशत् / तत् पश्यश्चकितो दीर्घालन्यै स्वगमं जगौ // 37 // विरहोदनदहनासहनाच्चुलनी ततः / नाथ ! त्वया न गन्तव्यं प्राणेभ्योऽप्यतिशायिना // 38 // इत्युक्तो दीर्घराडूचे स व्यसत्यपि वा मयि / / त्वत्कौशल्यं न पश्यामि कौशल्यमिदमुत्थितम् // 39 // . हृच्छयोऽभूज्जराभीरुर्नृणामनीक्षणस्थले। स्थितो नेक्षेत वस्त्वन्यत् कामान्धः स्याज्जनस्ततः // 40 // स्मरान्धा चुलनी पुत्रजिघांसाकुलधी रहः / विवाहमहमारेभे पुष्पचूलसुतावृतेः // 41 // कारयामास चावासममूढैगूढपूरुषः / मत्वा ननु धनुर्मन्त्री दीर्घादेशाज्जही गृहम् // 42 // प्रस्थितस्तीर्थसेवायें पुत्रं वरधनुं जगौ / चुलन्या दुश्चरित्रादि दूरे मा भूः कुमारतः // 43 // गङ्गासङ्गाद्धनुर्दानमण्डपे पान्थभोजनम् / कारयन् भुवि गुप्तां च सुरङ्गां सोऽप्यदापयत् // 44 // . . . . ज्ञापितो धनुना पुष्पचूलस्तवृत्तमञ्जसा / मुमोच दासी दुहितुर्भूषितां मणिभूषणैः // 45 // कृते विवाहे जतुना संस्कृते ब्रह्मसूरपि / सुप्तो गृहे वरधनुदौवारिक इव स्थितः // 46 // ज्वालिते ज्वलने ब्रह्मदत्तो वरधनूक्तितः / पद्धत्याऽऽस्फोटय भूभागं निरगास् तत्सुरङ्गया / 47 / सुरगावदने पूर्व धनुना स्थापितौ हयौ / पश्चाशद्योजनी प्राप्तौ तदारोहेण तावपि / 48 / अश्वयोमरणे पादचरणाज्जग्मतुः पथि / वनान्युपवनान्यद्रीन लङ्घन्यन्तौ श्रमाश्रमौ // 49 // ब्रह्मदत्तो रूपमधाद् ब्राह्मणस्य सुसूत्रभृत् / चूलामात्रधरो यस्मानोपलक्ष्येत केनचित् // 50 // पट्टबन्धेन पिदधे हृदि श्रीवत्सलाञ्छनम् / मन्त्रिमरपि तच्छात्रगात्रोऽभूत् स्नात्रकर्मणा // 51 // . क्वचिद् ग्रामे द्विजेनैतौ भोजितौ बहुमानतः / नैमित्तिकगिरा पुत्री ब्रह्मदत्ताय दत्तवान् // 52 // मुक्त्वा बन्धुमतीं तत्र पथि दीर्घभयाशया / उत्पथे चलितौ प्राप्तौ वटावटघनाटवीम् // 53 //