________________ 260 ] महोपाध्यायश्रीमन्मेषविजयविरचितम / श्रीब्रह्मदत्त कुमारे तृषिते मन्त्रिपुत्रो वारिजिघृक्षया / ग्रामं गतो दीर्घचरै रुरुधे वध्यतामिति // 54 // . क्व ब्रह्मदत्त इत्युक्तो बभाषे व्याघ्रभक्षितः / __ तत्स्थानं दर्शयेत्युक्तस्तान्निनाय स तद्वनम् // 55 // मन्त्रिसूचेष्टया नष्टः कुमारस्तापसाश्रमम् / प्राप जापरतानेक्ष्य ववन्दे तैरथौच्यत // 56 // कस्त्वं सत्त्वनिधेरेवं पृष्टः स्पष्टमभाषत / ऊचे कुलपतिर्वत्स भ्रातरं विद्धि ते पितुः // 57 // भ्रातृव्य सुस्थो भवतात् तव ताताल्लघोर्मम | मा मंस्था अन्यसदनं तिष्ठस्वेष्टं कुरूद्धह / 58 / समयेऽथ समायाते शरदो ब्रह्मसूर्वनम् / जगाम नागानुपदं गच्छन् सिन्धुरमैक्षत // 59 // तं वशीकृत्य कलयाऽध्यारुह्य ब्रह्मसूर्नदीम् / __ उत्तीर्य वीर्यवाँस्तस्माद् वंशजाली व्यलोकत // 60 // तस्याच्छेदनतः शीर्ष पपात भुवि पातकम् / ___ हा मया विहितं धिङ्मामनागस्कृद्विघातकम् // 61 // पुराणनगरेऽपश्यत् प्रासादं सप्तभूमिकम् / ___ आरूढः कामिनीमेकां स ददर्श शुचातुराम् // 62 // काऽसि त्वमिति पृष्टाऽसौ व्याचष्ट वृत्तमात्मनः / अङ्गराजपुष्पचूलस्याङ्गजा पुष्पवत्यहम् // 63 // ब्रह्मदत्ताय दत्ताऽप्याजहे विद्याधरेण च / नाटयोन्मत्तेन विद्यायाः सिद्धयेऽत्रेव तिष्ठता / 64 / कस्त्वं तयाऽपीति पृष्टः प्रोचे पाश्चालभूपतेः / ब्रह्मणस्तनयो ब्रह्मदत्तनाम्नाऽऽश्रमे स्थितः // 65 // .. कृतव्रीडा नतापीडा पीडामुत्सृज्य पादयोः / लग्ना मग्ना रसाम्भोधौ कुमारस्याऽश्रुपूर्णदृक् // 66 // लीलया तद्वधे प्रोक्त कुमारेण विवाहिता / कामिन्या सह यामिन्या प्रहरात् सोऽत्यवाहयत् // 67 / / श्रुते स्त्रीणां रवे प्रातः पृष्टा पुष्पवती जगौ / नाटयोन्मत्तस्य नाथैते भगिन्यावागते इह // 68 // खण्डाविशाखानाम्ने मे रहस्तिष्ठाऽधुना प्रभो। भावं विदित्वा त्वनयोराहयिष्यामि नायकम् / / 69 //