________________ चरितम् ] लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् [ 199 देव्यश्चतस्रो रामस्य जानकी च प्रभावती / रतिप्रभाऽपि श्रीदामा रूपेण जयवाहिनी // 1002 // जानक्या शरभद्वतस्वप्नसंवीक्षणात् सुतौ / भाविनौ शंसितौ भाऽन्तर्वत्नी साऽभवत् तदा // 1003 // सपत्न्योऽपीर्ण्ययाऽन्येद्युः मैथिली प्राहुरुत्सुकाः / दशास्यः सुभगो यद्वा भीषणः कीदृशः स वै // 1004 // साऽप्याजवादवादीत् ता दृष्टो नोच्चैर्मुखादिषु / पादमात्रं मया दृष्टमधोमुख्या तदीयकम् // 1005 // लिखित्वा पादविन्यासमस्मान् दर्शय साम्प्रतम् / / ___ यतस्तदनुमानेन प्रतीमस्तत्सुरूपताम् // 1006 // तया लिखितपादाङ्कं गोपयित्वा परस्त्रियः / रामाय दर्शयामासुः सीतारागोऽस्ति रावणे // 1007 // दासीमुखैः परा राज्यः प्रादुश्चक्रुर्महीसुताम् / असती रामचन्द्रस्तु नामन्यत मनागपि // 1008 // प्राग्वदेव प्रववृते बहुमानासनादिभिः / __गाम्भीर्यशाली प्रकृत्या न भवेद् विकृतो महान् // 1009 // रामोऽवोचद् वैदेहि देहि वाक्यं मम प्रियम् / .. तव दोहदपूत्यै स्यां वसन्तकुसुमादिभिः // 1010 // तयोक्तं नाथ ! जैनेन्द्रीं पूजां कारयत द्रुतम् / एतदेव देव मेऽस्ति दोहदं हृदयान्तरे / 1011 / अर्हत्पूजाविधौ सीताचक्षुर्दक्षिणमस्फुरत् / तनिमित्तविघाताय तत्परस्त्वभवत् पतिः।१०१२। गृहे गत्वा जैनपूजारचनं वचनं शुभम् / सुपात्रेभ्यो दान विधिः कुरु दानं यथेच्छया // 1013 // इत्यादिष्टा ददौ दानं जिनपूजा महोत्सवैः / जानकी पटहो घोषात् तोषाच्चक्रे दयोदयम् // 1014 // इतो नगरवास्तव्या श्रेष्ठिनो रामभूभृते / व्यजिज्ञपन देव वाच्यं देहि नोऽवसरं मनाक // 1015 //