________________ महोपाध्यायश्रीमन्मेषविजयविरचितम् [ श्रीपद्म तां सूरिस्तुतिमापीयार्हद्दत्तो मासि कार्तिके / उपेत्योज्ज्वलसप्तम्यां ववन्दे मथुरास्थितान् // 988 // सप्तर्षीणां तत्र वासाद् रोगशान्ति निशामयन् / .. शत्रुघ्नो मथुरामेत्य तस्थौ सुस्थितमानसः // 989 // . प्रावृडन्ते विचलिषून सप्तर्षीन् रक्षणेच्छया / .. शत्रुघ्नः प्राह तिष्ठन्तु यूयं रोगनिवारकाः // 990 // गृहे गृहे त्वं गृहिणां कारयेबिम्बमार्हतम् / तत्स्नात्रजलसंसर्गान् न व्याधिर्वाधयिष्यति // 991 // .. सप्तर्षीणां चतुर्दिक्षु मथुरायां न्यवेशयत् / / स्फुरद्रत्नमयी रम्याः प्रतिमा जनपूजिताः // 992 // वैताढथे रत्नपुर्याश्च स्वामी रत्नरथो नृपः / __ चन्द्रमुखीकुक्षिजाता पुत्री नाम्ना मनोरमा // 993 // तत्पुत्रो न स्वसुर्दानं सौमित्रये समैहत / नारदेन समं जज्ञे कलहश्छलशालिनः // 994 // . निशम्य सम्यक् तां वार्ता रामश्चेयाय तत्पुरम् / १श्रीदामां स्वां सुतां रत्नरथो रामाय दत्तवान् // 995 // मनोरमां लक्ष्मणाय ततस्तौ बलमाधवौ / साधयामासतुः श्रेण्यौ वैताढ्योभयपार्श्वगे // 996 // सहस्राः षोडशाऽभूवंल्लक्ष्मणस्याष्टमुख्यगाः। महिष्यस्तासु वात्सल्यं विशल्यायां विशेषतः // 997 // वनमाला च कल्याणमाला च रतिमालिका / जितपमाऽभयवती मनोरमाऽष्टमी स्मृता // 998 // तनया द्विशतीसार्द्धा तेष्वष्टमहिषीभवाः / श्रीधरोऽत्र विशल्याभूः पृथिवीतिलकोऽपरः // 999 // रूपवत्या वनमालाकुक्षिजश्चार्जुनाह्वयः / श्रीकेशोऽजितपद्मायाः कल्याणायास्तु मङ्गलः // 1000 // सुपार्श्वकीतिरभवन्मनोरमासमुद्भवः / विमलो रतिमालाभूरभया सत्यकीर्तिमः // 1001 //