________________ 190 ] महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम् [ श्रीपद्म स गत्वा द्वास्थविज्ञप्तः सुग्रीवादिसमावृतम् / पद्मनाभं नमस्कृत्य निर्व्याज व्याजहार सः // 861 // दशास्यस्त्वां वदत्येवं बन्धुवर्ग विमुश्च मे / जानकीमनुमन्यस्व राज्यार्द्ध च गृहाण मे // 862 // त्रीणि कन्यासहस्राणि तुभ्यं दास्यामि तेन च / सन्तुष्य नो चेत् ते सर्व न ह्येतन च जीवितम् // 863 / / पद्मनाभोऽपि निश्छद्म प्राह प्रेषय जानकीम् / त्वद्वन्धूनां तदा मोक्षः प्राणमोक्षस्तवाऽन्यथा // 864 // तद् विबुध्य दशग्रीवो विद्यां साधयितुं पुनः / चैत्ये जगाम श्रीशान्तेरहंतो भक्तिसक्तधीः // 865 // स्नानं विधाय विधिना गन्धपुष्पाऽक्षतादिभिः / स्तोतुं प्रचक्रमे शक्रपराक्रमधरः प्रभुम् // 866 // जय त्वं नाथ पाथश्रीः भवतापोपशान्तये / सर्वार्थसिद्धिमन्त्राय नमो नाम्नेऽपि शान्तये // 867 // अष्टकर्मापहारायाऽणिमाद्यष्टद्धिसिद्धये / __ अष्टधाऽर्चनमाम्नातं सूरिभिश्चाष्टभीतिभित् // 868 // सिद्धाष्टगुणमाहात्म्यं स्पष्टं त्वय्येव तिष्ठति / भट्टारकस्तारकस्त्वं भवाब्धौ तत् प्रसीदतात् // 869 / / स्तुत्वा नत्वा भृशं विद्यां सस्मार बहुरूपिणीम् / दशाननः साक्षमालो वशीकृत्येन्द्रियोच्चयम् // 870 // ससम्परायास्तद्धयानेऽन्तरायान् कपयो व्यधुः / स्वामिनो नोभयभ्रान्त्या किमारब्धमिति बुवाः // 871 // सीता नीता त्वया चौर्यान्नये मन्दोदरी तथा / इत्युदीर्याङ्गदस्तां चानेपीन् नालोकयत् स ताम् // 872 // प्रातः प्रसन्ना विद्याऽस्मिन् वद किं करवाणि ते / कार्य निवेदयेत्युक्त्वा पुरस्तस्थौ च सा सुरी // 873 //