________________ चरितम् ] लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् / 177 उद्याने तस्थिवान रामः सुग्रीवः प्राविशत् पुरीम् / __तांता' वृत्तान्तमाचष्ट भ्रात्रे चन्द्रणखा मुखात् // 662 // मन्दोदर्यपि चित्तान्तःस्वास्थाय स्वपतेर्ययौ / वने सीताविबोधायेत्यवक् मन्नायकं भज // 663 // रजस्त्यज वनभ्रान्तेः कान्ते भ्रान्ते तवाऽधुना / शान्ते निशान्ते कर्ताऽस्मि दास्यं लास्यं दिवानिशम् // 664 // सत्या प्रोचे निःश्वसन्त्याः किं वक्षि सखि दुर्वचः / कर्णे कटु पटुत्वं ते गिरा वैधव्यहेतवे // 665 // याहि पाहि गृहं स्वीयमक्षतं रक्षताद् व्रतम् / इत्यादिवाचां धिक्कारैः गता मन्दोदरी गृहे // 666 // उद्याने देवरमण उपसर्गान् भयङ्करान् / दशाननः काननोत्थै विदधे व्यालऋक्षकैः // 667 // शीललीलासहायाऽसौ ध्यायन्ती परमेष्ठिनः / अभीता निशि सीताऽस्थात् स्मरन्ती रामनाम च // 668 // विभीषणेन पृष्टाऽसौ का त्वं कस्य सुता स्नुषा / आमूलं सर्ववृत्तान्तं जानकी रुदती जगौ // 669 // तच्छ्रत्वा रावणं नत्वा बभाषे च बिभीषणः / .. नेयं त्वयि रता तेन प्रत्यर्पय विशुद्धधीः // 670 // . दशास्यो हास्यतः प्रोचे भ्रातबिभेषि किं मुधा ? / - विभीषण इति स्वाख्यां किं प्रख्यापयसे भुवि // 671 // स्त्रीणां वक्रस्वभावत्वाद् वामाङ्गी प्रथिता जने / तदियं वदनान्नेति वदती मे च रोचते / 672 / शोचते पतिवार्ता तु पृष्टे जातं किमित्यसौ / . - शान्तौ हि स्थास्यतस्तत्र भ्रातरौ निर्बलौ स्वतः // 673 // अशान्तौ तत्र दुःखेण यदीहायास्यतो रसात् / तथापि मेऽसिना घातात् शान्तौ भविष्यतो ध्रुवम् // 674 // 1. तांता खेदं प्राप्ता / 'ल. त्रि. 23