________________ चरितम् ] लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् [ 16 महीधरस्तत्र भूपः पत्नीन्द्राणी तयोः सुता / वनमाला शैशवेऽपि लक्ष्मणस्याऽनुरागिणी // 506 // पित्रा दत्ता चन्द्रपुरे वृषभक्ष्मापसूनवे / तद् विमृश्योद्यानमागान् मुमूर्षुः पाशबन्धनात् // 507 // तां तथावस्थितां नाम स्मरन्तीं स्वं च लक्ष्मणः / __ छित्त्वा पाशं समाश्वास्य तां शशंसाऽग्रजन्मने // 508 // महीधरोऽन्वागतोऽस्या उपलक्ष्य प्रशान्तरुट् / निजगेहं धृतस्नेहं समानिन्ये त्रयीमपि // 509 // अन्येधुरागतं दूतमतिवीर्यस्य भूपतेः / महीधराह्वानकृते रामोऽपृच्छत् प्रयोजनम् // 510 // भरतेन समं स्वामी युयुत्सुनों निमन्त्रणम् / ___ कुरुतेऽस्येति मत्वाऽऽख्यद् रामो महीधरं नृपम् // 511 // त्वत्सुतान् सेनया युक्तानादाय तन्मदच्छिदे / यास्ये नन्द्यावर्तपुरमित्युक्त्वा राघवोऽचलत् // 512 // स्त्रीभिजितोऽयमित्यस्याऽपयशः कर्तुमुन्मनाः / . रामः स्वं लक्ष्मणं सैन्यं सर्व स्त्रीरूपमादधे // 513 // अतिवीर्यों निवार्येयं स्त्रीसेनेति स्वसेवकान् / . * आदिशन् वाससा बद्ध्वा लक्ष्मणेन स्वसात्कृतः // 514 // स्वीकार्य भारती सेवां मोचयामास जानकी / आदत्ता यं व्रतं मानात् सेवेऽस्य भरतं सुतः // 515 // रामे विचलिषौ तस्मादपृच्छद् वनमालिकाम् / - लक्ष्मणः पुनरेव्यानि कृत्वा कार्य च कामितम् // 516 // प्रत्येति शपथै नाकृतैरपि न सा यदा / सौमित्रिः शपथं चक्रे रात्रिभोजनपाप्मनः // 517 // क्षेमाञ्जलिपुरी प्रापद् रामः सौमित्रिणा पुरे / __ अश्रावि घोषणापूर्व यः शक्तिं सहते सकृत् // 518 // दत्ते राजा सुतां तस्मै इति शौर्यपरीक्षया / राजानं प्राप्य सौमित्रिर्जगाद सादरं पुनः / 519 / शक्तिघातं सहिष्येऽहं निस्सन्देहं कुरूद्यमम् / नृपश्चिक्षेपेति वाचा साक्षेपं शक्तिपञ्चकम् / 520 /