________________ चरितम् ] लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् [ 165 वज्रकर्णेऽभिग्रहोऽभूद् विना देवं गुरुं नतिः / न कार्याऽन्यत्र मुद्रायां कारिता सुव्रताकृतिः // 480 // सिंहोदरनमस्यायां सुव्रतं प्रतिमानतिम् / स दध्यौ दुर्जनैत्विा सिंहोदरः प्रकोपितः // 481 // तत् साधर्मिकवात्सल्यं मत्वा रामस्तयोमिथः / मंक्षुक्षामणयामास वाक्यैरेवं व्यधादयम् // 482 // कन्याष्टकं वज्रकर्णः कुमारीणां शतत्रयम् / ददौ सिंहोदरो रामानुजाय बलशालिने // 483 // साम्प्रतं मलय शैलं गन्तुमिच्छा ततः कनीः / रक्षणीयाः स्वसदने करिष्यामः करग्रहम् // 484 // मार्गे सञ्चरतां तेषां सीता श्रान्ता पिपासिता / 1. वटाधस्तस्थुषी नीरमानेतुं लक्ष्मणोऽप्यगात् // 485 // सरस्तीरे नृपो दृष्टो नाम्ना कल्याणमालिकः / ..तदभ्यर्थनया तस्य पुरे जग्मुस्त्रयोऽपि ते // 486 // रामेण पृष्टः स प्रोचे स्ववार्ता कूबरे पुरे / - वालिखिल्यो नृपः पत्नी पृथ्वी तयोः सुतोऽस्म्यहम् // 487 // मम गर्भस्थितौ राजा म्लेच्छैर्बद्धोऽस्ति तद्गृहे / मज्जन्मनि सुतो जातो राश्येत्युचुश्च मन्त्रिणः // 488 // बाल्यात् पुंवेषधरणे राजव्याजात् प्रवद्धिता / तन्मोचयतु मत्तातं ज्ञात्वा रामोऽप्यमोचयत् // 489 // दत्ता कल्याणमालाऽपि लक्ष्मणाय स्थिता गृहे / स्थित्वा दिनत्रयं तत्र काकुत्स्थोऽप्यचलत् ततः // 490 // मार्गेऽमिलन् म्लेच्छबलं सीताग्रहणचञ्चलम् / लक्ष्मणस्य धनुःशब्दात् तदीशो भयमादधे // 491 // रामं ननाम विनयात् काकः पल्लीपतिस्त्वहम् / त्वत् किङ्करोऽस्मीति वदन् नत्वाऽगानगमध्यगः // 492 //