________________ चरितम् ] लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् [ 153 जैन धर्म प्रपद्यायं विपद्यायुःपरिक्षये / देवीभूय च्युतस्तस्माद् वैताढथे सिंहवाहनः // 294 // वारुणे नगरे जातस्तातोऽस्याऽभूव सुकण्ठकः / कनकोदर्यस्य माता विख्याता शीललीलया // 295 // त्रयोदशाऽर्हतस्तीर्थे लक्ष्मीधरगुरोर्ब्रतात् / तपस्वी लान्तकसुरोऽवतीर्णः सोऽञ्जनोदरे / 296 / भविता सविता दीप्त्या वीर्यवान् खेचरेश्वरः / परमश्वरमाङ्गोऽयं भाग्यसौभाग्यसम्पदा // 297 // अत्रैव भरतक्षेत्रे पुरे कनकसंज्ञिते / भूपतिः कनकरथः पथिकः स नये पथि // 298 // लक्ष्मीवती श्राविकाऽर्हद्बिम्बं रत्नमयं मुदा / ___ अकारयत् तदर्चा च त्रिसन्ध्यं व्यदधादियम् // 299 // सापत्न्यात् कनकोदर्या सा हृता प्रतिमा ततः / __क्षिप्तावकरमध्ये सा दुधिया रोषपोषतः // 300 // जयश्रिया गणिन्यासौ प्रत्यबोधि किमीदृशम् / . पापं विधाय नरकेऽक्षेप्सीरात्मानमात्मना // 301 // ततोऽनुतापात् प्रतिमां प्रमृज्याऽस्थापयत् पदे / 'प्रपाल्य जैनधर्म सा सौधर्मेऽभूत् सुरी शुभा // 302 // च्युत्वा क्रमात् तव सखी महेन्द्रस्याऽङ्गजाऽजनि / . प्राग्भवे भगिनी ह्यस्यास्त्वं कर्मसहचारिणी // 303 // तदिनाज्जिनधर्मे ते रक्ते त्यक्तकुशासने / अपश्यतां च पश्चास्यमन्यदा भयवेपथुः // 304 // मणिचूलो गुहास्वामी गन्धर्वः सिंहमेश्य तम् / विदार्य सुस्थिते कृत्वा चक्रे सान्निध्यमेतयोः // 305 // मुनिसुव्रतदेवार्चा कुर्वाणे ते सुखं स्थिते / अञ्जना जनयामास तनयं शुभलक्षणम् // 306 // तत्राऽगादेकदा चित्रभानुपुत्रः पवित्रधीः / प्रतिसूर्यों हनुपुरस्वामी कामी नयाध्वनः / 307 / तयोः स्त्रियोः स्वरूपेऽथ पृष्टे सम्बन्धबोधने / तयोराश्वासनां चक्रे मा रोदिष्टामितीष्टवाक् // 308 // अञ्जनामाह जननी तव या मे स्वसाऽस्ति सा / * मातुलं तं विदित्वा सांऽजनाऽजनि तदोन्मनाः // 309 // ल. त्रि. 20