________________ 148 ] महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम [ श्रीपद्म - - भ्रान्त्वा भवं स प्रभवो विश्वावसुनृपात्मजः / श्रीकुमार इति ख्यातो ज्योतिर्मत्यां महामतिः // 222 // सनिदानं तपः कृत्वा चमरेन्द्रोऽभवद् भुवि / शूलायुधं ददौ मैत्र्यादहो मैत्री महात्मनाम् // 223 // द्विसहस्रयोजनान्ते शूलं कार्य करोत्यदः / श्रुत्वा दशाननस्तस्मै ददौ कन्यां मनोरमाम् // 224 // मेरौ पाण्डुकचैत्यानि नन्तुं दशमुखो ययौ / शाश्वताहतबिम्बानि तत्रानर्च महोत्सवैः // 225 // दुर्लघनगरे प्राचीदिकपालं नलकूबरम् / कुम्भकर्णादयो जेतुं मुक्तास्त्यक्तजयाशयाः // 226 // वर्ष वह्निमयं कृत्वाऽऽशालीविद्याबलात् सुखी / नलकूबरराजोऽस्थात् तदन्तर्वह्नियन्त्रकृत् / / 227 // तत्रायाते दशमुखेऽनुरागानलकामिनी / दूतीमुखादिदं प्रोचे पुण्यप्रागुण्यमप्यहो // 228 // नलकूबरपत्नी मे मुखाद् विज्ञपयत्यदः / विद्यामाशालिकां स्वामिन् करिष्ये त्वद्वशंवदाम् / / 229 // चक्रं सुदर्शनं सेत्स्यत्यत्रैव तव मे धिया / __भोक्ष्यसे भरतार्द्ध तन्निःसपत्नं सुयत्नतः // 230 // देवसेवां समीहेऽहमित्यादिदूतिकागिराम् / __विभीषणस्तत् प्रमाणमित्युक्त्या विससर्ज ताम् // 231 // नलकूबरपत्न्येत्य विद्यादाने कृतेक्षणात् / / प्रशान्तेऽग्नौ पुरीं प्राप्याऽवध्नाच्च नलकूबरम् // 232 // सुदर्शनं चक्रमपि ततः प्राप स रावणः / तत्रैव राज्ये तं न्यस्योपरंभां तत् प्रियां जगौ // 233 // विद्यादानाद् गुरुर्जाता माता सम्प्रति मे हृदि / कामध्वजाङ्गजाऽसि त्वं सुन्दर्या ब्रह्म रक्ष तत् // 234 // रथनूपुरमुद्दिश्य प्रस्थिते रावणे ततः / इन्द्रोऽभ्यषेणयल्लोकैर्वार्यमाणो विहङ्गमैः // 235 // अन्योन्यमान्यसैन्यानां सङ्गमे जङ्गमे भये / प्रलयेश्वेतसूरादेरुपतस्थुषि भूतले // 236 //