________________ चरितम् / लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् [ 129 शक्रं निरीक्ष्य सोऽहंयुः पलायिष्ट बलादमुम् / ग्राहयित्वा सुरैस्तं चारुरोह पाकशासनः // 66 // विचक्रे स शिरोद्वैतं द्विमूतिर्वासवस्तदा / एवं शीर्षाणि कुर्वाणे तावन्मूर्तीरधाद्धरिः // 67 // विज्ञायाऽवधिना वजी वज्रमुल्लालयन् करे / तं धिक्कृत्य वशीचक्रे यथा जझे विमत्सरः // 68 // व्यतीता सार्द्धसप्ताब्दसहस्री व्रतपालने / कौमारेऽपि तथैवान्या राज्ये पञ्चदशैव ते // 69 // त्रिंशद् वर्षसहस्राः स्युः सर्वायुः सुव्रतो दधौ / / सम्मेतशैलेऽनशनी मासान्ते मुक्तिमासदत् // 70 // श्रीमल्लिनाथनिर्वाणान् मुनिसुव्रतनिर्वृतिः / चतुःपञ्चाशीतिसमालखेष्वतिगतेष्वभूत् // 71 // इति श्रीलघुत्रिषष्टीयचरिते श्रीमुनिसुव्रतजिनचरितं संपूर्णम् // श्रीः ग्रं. 71 श्लोकाः __ श्रीमहापद्मचक्रवर्तिचरितम् / मुनिसुव्रततीर्थेशे विहरत्यपि चक्रभृत् / महापोऽभवत् तस्य जम्बूद्वीपे पुरा भवः // 1 // सुकच्छे प्राविदेहेषु विजये जयभाजनम् / पुरं श्रीनगरं नाम्ना नगरंगद्गृहाऽन्वितम् // 2 // प्रजापालो महीनाथः स भुक्त्वा भोगसङ्गमम् / - निरीक्ष्य विद्युत्संपातं विरज्य व्रतमाददे // 3 // . समाधिगुप्तस्वगुरोः प्रपन्नानशनक्रियः / . अच्युतेन्द्रो विपद्याऽभूद् द्वाविंशत्यग्धिजीवितः // 4 // च्युत्वाऽतो हास्तिनपुरे पद्मोत्तरनृपाङ्गजः / ज्वालादेव्यां समुत्पेदे नद्यामिव महाम्बुजम् // 5 // चतुर्दशस्वप्नवीक्षा पुण्यदोहदसम्भवात् / पित्रोः प्रमोदेन समं लेभे जन्म शुभेऽहनि // 6 // . महापयाभिधानेन पित्रा दत्तेन सान्वयम् / ननन्दाऽऽनन्दनो लोके विष्णुनामाऽस्य चाऽग्रजः // 7 // ल. त्रि. 17