________________ 104 ] . महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम [ श्रीशान्तिनाथ मासे भाद्रपदे कृष्णपक्षे सप्तमिकातिथौ / भरणीस्थे चन्द्रमसि गर्भ मेघरथोऽजनि // 367 // चतुर्दशाऽनया स्वप्नाः दृष्टा गजर्षभौ पुरः / सिंहो लक्ष्मीर्दामचन्द्रौ सूर्यध्वजघटास्ततः // 368 / / सरः पद्माख्ययाम्भोधिविमानो रत्नसञ्चयः / शिखी सुखीकृतोद्देशाः प्रवेशा इव सुश्रियाम् // 369 / / उपदेशा इवाप्तानां लेखहल्लेखकारिणः / ___ सुपर्वपर्वभिः पूर्णाः पूर्णा चन्द्रकला इव // 370 // त्रिभिर्विशेषकम् तान् वीक्ष्य दक्षाम्भोजाक्षी साक्षीकृतमहामहा / __भत्रै निवेदयामास स जगौ सुभगौचिती // 371 // पुत्रः पवित्रस्ते भावी वल्लभस्त्रिजगत्यपि / सुराऽसुरनृणां जन्म सफलीकर्तुमीक्षणात् // 372 // क्षणादभूद् रत्नवृष्टिस्तुष्टिः सर्वपुरौकसाम् / ___ रसाऽपि सरसा धान्यबहुधान्यैः सुकर्मभिः // 373 // प्रभाते जातहर्षेण नृपेणाऽऽमन्त्रिता द्विजाः / तथैवानूचिरे वाचं साधनं धनसम्पदाम् / 374 / नगरे शान्तिरुत्पेदे दुष्टारिष्टस्य नाशनात् / शासनं रिपवो राज्ञः प्राप्ता दुर्वासना अपि // 375 // एतत्स्वप्नप्रभावेण जिनो वा चक्रभृद् भुवि / ___ भविष्यतीति विप्रोक्तेनूपोऽपि मुमुदेतराम् // 376 // नातिस्निग्धं नातितीव्र नातिक्षारकषायकम् / नातिमृष्टं नातिकटु बुभुजे सा चिराचिरात् // 377 / / पूर्णे दोहदसंदोहे ज्येष्ठाऽसितचतुर्थिकाम् / भरण्यां जन्मना देवः पुपाव शुभभावतः // 378 // षट्पञ्चाशद् दिक्कुमार्यों जैनं चक्रुर्महोत्सवम् / चतुःषष्टि सुराधीशा निन्युर्मेलं जिनेश्वरम् // 378 // जन्मोत्सवविधिर्जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रतः / वाच्यः प्राच्यवचोयोगात् प्रातस्त्यश्च नृपोचितः // 380 //