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________________ श्रद्धा और विश्वास की दृष्टि से भी यह तन्त्र इस कलिकाल के लिए सर्वथा उपयुक्त माना गया है। प्रस्तुत श्रीलघुकालचक्रतन्त्रराज और उसकी विस्तृत विमलप्रभा टीका इस वाङ्मय का हृदय एवं सार है। इसके वैज्ञानिक संस्करण का प्रकाशन निःसन्देह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है। इस कार्य की विगत अनेक वर्षों से अपेक्षा की जा रही थी, किन्तु ग्रन्थ की विशालता, दुरुहता एवं गम्भीरता के कारण कोई विद्वान् इस कार्य को सम्पन्न करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय बौद्ध धर्म और दर्शन के विश्रुत विद्वान् ही नहीं हैं, अपि तु भारत में बौद्ध विद्याओं के प्रचार-प्रसार में इनका महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक योगदान रहा है। इधर इन्होंने बौद्ध तन्त्र-विद्या के अध्ययन की ओर ध्यान दिया है / हम प्रो० उपाध्याय के आभारी हैं, जिन्होंने इस कार्य को सम्पन्न करने का संकल्प लिया और वर्षों के अथक परिश्रम के फल-स्वरूप इस कार्य को सम्पन्न कर हमें भोट-भारतीयग्रन्थमाला के अन्तर्गत प्रकाशित करने का अवसर प्रदान किया है। इस महत्त्वपूर्ण और अब तक अप्रकाशित विमलप्रभा ग्रन्थ का पहली बार प्रकाशन करके संस्था अपने को गौरवान्वित समझती है। यह भी अत्यन्त सौभाग्य की बात है कि बोधगया में श्रीकालचक्रतन्त्र के अभिषेक के पुनीत अवसर पर विश्वगुरु परम-पावन दलाई लामा जी के कर-कमलों में समर्पित कर इसका प्रकाशनोद्घाटन हो रहा है। आशा है इससे जिज्ञासु विनेय जनों . को तन्त्र-विद्या के अधिगम, शोध एवं अध्ययन में सहायता प्राप्त होगी। दिसम्बर 26, 1986 भिक्षु समदोङ, रिन्पोछे प्राचार्य केन्द्रीय उच्च तिब्बती-शिक्षा-संस्थान सारनाथ, वाराणसी ( vi )
SR No.004303
Book TitleVimalprabha Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Upadhyay
PublisherKendriya Uccha Tibbati Shiksha Samsthan
Publication Year1986
Total Pages320
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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