________________ 36 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ___महात्मा बुद्ध ने भिक्षुओं के लिए दस शीलों का विधान किया था। दस-शील (1) प्राणातिपात-विरति / (2) अदत्तादान-विरति / (3) अब्रह्मचर्य-विरति / (4) मृषावाद-विरति / (5) सुरा-मद्य-मैरेय-विरति / (6) अकाल-भोजन-विरति / (7) नृत्य-गीत-वादित्र-विरति / (8) माल्य-गंध-विलेपन-विरति / (8) उच्चासन-शयन-विरति / (10) जातरूप-रजत-प्रतिग्रह-विरति / ' उपासकों के लिए पञ्चशील का विधान है / पञ्चशील ये हैं (1) प्राणातिपात-विरति / (2) अदत्तादान-विरति / (3) काम-मिथ्याचार-विरति / (4) मृषावाद-विरति / (5) सुरा-मैरेय-प्रमाद-स्थान-विरति / 2 आजीवक-उपासक बैलों को नपुंसक नहीं करते थे ; उनको नाक भी नहीं बींधते थे ; आजीविका के लिए त्रस जीवों का वध नहीं करते थे ; उदुम्बर और बरगद के फल तथा प्याज-लहसुन और कन्द-मूल आदि नहीं खाते थे / इस प्रकार जैन, बौद्ध और आजीवक-इन तीनों में व्रतों की व्यवस्था मिलती है / शेष श्रमण-सम्प्रदायों में भी व्रतों की व्यवस्था होनी चाहिए। जहाँ श्रामण्य या प्रव्रज्या की व्यवस्था है, वहाँ व्रतों की व्यवस्था न हो, ऐसा सम्भव नहीं लगता। जैन-धर्म और व्रत-परम्परा डॉ० हर्मन जेकोबी ने ऐसी संभावना की है कि जैनों ने अपने व्रत ब्राह्मणों से उधार १-बौद्धधर्मदर्शन, पृ० 19 / २-वही, पृ० 24 // ३-भगवती, 8 / 5 /