________________ २-श्रमण-परम्परा की एकसूत्रता और उसके हेतु जितने श्रमण-सम्प्रदाय थे, उनमें अनेक मतवाद थे। पूरणकश्यप अक्रियावादी था।' .. मस्करी गोशालक संसार-शुद्धिवादी या नियतिवादी था / 2 अजितकेशकम्बल उच्छेदवादी था। प्रक्रुद्धकात्यायन अन्योन्यवादी था। संजयवेलट्ठिपुत्र विक्षेपवादी था।" बौद्ध-दर्शन क्षणिकवादी और जैन-दर्शन स्याद्वादी था। इतने विरोधी विचारों के होते हुए भी वे सब श्रमण थे, अवैदिक थे। इसका हेतु क्या था ? कौन सा ऐसा समता का धागा था, जो सबको एक माला में पिरोए हुए था। इस प्रश्न की मीमांसा अब तक प्राप्त नहीं है। किन्तु श्रमणों की मान्यता और जीवन-चर्या का अध्ययन करने पर हम कुछ निष्कर्षों पर पहुँच सकते हैं : (1) परम्परागत एकता (2) व्रत (3) संन्यास या श्रामण्य (4) यज्ञ-प्रतिरोध (5) वेद का अप्रामाण्य (6) जाति की अतात्त्विकता (7) समत्व की भावना व अहिंसा १-दीघनिकाय, सामञफल सुत्त, पृ० 19 / २-(क) भगवती, 15 / (ख) उपासकदशा, 7 / (ग) दीघनिकाय, सामञफल सुत्त, पृ० 20 / ३-(क) दशाश्रुतस्कंध, छट्ठी दशा : (ख) दीघनिकाय, सामञफल सुत्त, पृ० 20-21 / ४-(क) सूत्रकृतांग, 131217 : (ख) दीघनिकाय, सामञफल सुत्त, पृ० 21 / ५-दीघनिकाय, सामञफलसुत्त, पृ० 22 /