________________ खण्ड 2, प्रकरण : 11 सूक्त और शिक्षा-पद कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि / 4 / 3 ... किए कर्मो को भुगते बिना मुक्ति कहाँ ? .. वित्तण ताणं न लभे पमत्ते। 45 प्रमत्त मनुष्य धन से त्राण नहीं पाता। घोरा मुहत्ता अबलं सरीरं / 4 / 6 ___ समय बड़ा निर्मम है और शरीर बड़ा निर्बल है। छन्दं निरोहेण उवेइ मोक्खं / 4 / 8 इच्छा को जीतो, स्वतंत्र बन जाओगे। खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउ। 4 / 10 तुरंत ही सम्भल जाना बड़ा कठिन काम है। अप्पाणरक्खी चरमप्पमत्तो। 4 / 10 ___ आत्मा की रक्षा करो, कभी प्रमाद मत करो। न मे दिट्टे परे लोए चक्खु विट्ठा इमा रई / 5 // 5 परलोक किसने देखा है, यह सुख आँखों के सामने है। अप्पणा सच्चमेसेज्जा / 6 / 2 .. सत्य की खोज करो। मेत्तिं भूएसु कप्पए / 62 सब जीवों के साथ मैत्री रखो। न चित्ता तायए भासा / 6 / 10 भाषा में शरण मत ढूँढ़ो। कम्मसच्चाहु पाणिणो / 7 / 20 किया हुआ कर्म कभी विफल नहीं होता। जायाए घासमेसेज्जा रस गिद्धे न सिया भिक्खाए / 8 / 11 __मुनि. जीवन-निर्वाह के लिए खाए, रस-लोलुप न बने / समयं गोयम ! मा पमायए। 101 . एक क्षण के लिए भी प्रमाद मत कर / मा वन्तं पुणो वि आइए।१०।२९ * वमन को फिर मत चाटो। महप्पसाया इसिणो हवन्ति / 12 / 31 . ऋषि महान् प्रसन्न-चित होते हैं। न हु मुणी कोवपरा हवन्ति / 12331 मुनि कोप नहीं किया करते /