________________ . प्रकरण : ग्यारह्वबाँ सूक्त और शिक्षा-पद सूक्त: विणय मेसेज्जा / 17 विनय की खोज करो। अट्ठजुताणि सिक्खेजा निरटाणि उ वजए / 118 जो अर्थवान् है, उसे सीखो। निरर्थक को छोड़ दो। अणुसासिओ न कुप्पेज्जा / 119 अनुशासन मिलने पर क्रोध न करो। खंति सेविज्ज पण्डिए / 119 क्षमाशील बनो। खुड्डेहिं सह संसग्गि हासं कीडं च वज्जए। 119 ओछे व्यक्तियों का संसर्ग मत करो, हँसी-मखोल मत करो। मा य चण्डालियं कासी। 1110 नीच कर्म मत करो। बहुयं मा य आलवे / 1 / 10 बहुत मत बोलो। :कडं कडेत्ति भासेज्जा अकडं नो कडे ति य / 1111 __किया हो तो ना मत करो और न किया हो तो हाँ मत करो। ना पृट्टो वागरे किंचि पृट्टो वा नालियं वए।१४ बिना पूछे मत बोलो और पूछने पर झूठ मत बोलो। कोहं असच्चं कुवेज्जा / 1 / 14 क्रोध को विफल करो। अप्पा चेव दमेयव्यो। 1115 आत्मा का दमन करो। अप्पा हु खलु दुद्दमो। 1115 ____ आत्मा बहुत दुर्दम है। अप्पा दन्तो सुही होइ / 115 - सुख उसे मिलता है, जो आत्मा को जीत लेता है।