________________ 480 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन 3 / 18 जसोबले यश और बल को यशस्वी और बली से अभिन्न मानकर मत्वर्थीय प्रत्यय . का लोप किया गया है / (188) 5 / 32 आघायाय यह 'शन' प्रत्यय के अर्थ में आर्ष प्रयोग है / (254) 7 / 30 अबालं यह प्रयोग 'अबालत्तं' के स्थान पर हुआ है। निर्देश्य का भाव-प्रधाम ___ कथन होने के कारण यहाँ अबालत्वं का ग्रहण करना चाहिए / (285) 9 / 35 बज्झओ यहाँ तृतीया के अर्थ में 'तस्' प्रत्यय हुआ है / (314) 6 / 46 विज्जा यह त्वा प्रत्यय का रूप है / (317) 1028 सारइयं सारयं के स्थान पर यह प्रयोग हुआ है / (338,336) 20143 लप्पमाणे प्राकृत व्याकरण के कारण 'लपन्' के स्थान पर यह प्रयोग हुआ . है / (478) 24 / 16 अणुपुव्वसो तृतीया विभक्ति के अर्थ में यहाँ 'शस्' प्रत्यय का प्रयोग है / (518) 2633 अणइक्कमणा यह 'अणइक्कमणं' के स्थान पर प्रयुक्त है (543) 34 / 23 इस श्लोक में 'ईर्ष्या' आदि शब्दों में 'मतु' प्रत्यय का लोप माना गया है / (656) ६-लिङ्ग 16 संसगि यहाँ पुल्लिङ्ग 'संसम्म' के स्थान में स्त्रीलिङ्ग 'संसग्गि' है / (47) 3 / 17 कामखंधाणि यहाँ स्कंध शब्द का नपुंसकलिङ्ग में प्रयोग हुआ है / (188) 512 सुया"ठाणा यहाँ नपुंसकलिङ्ग के स्थान पर पुल्लिङ्ग का प्रयोग हुआ है। (246,247)