________________ 451 (धम्मपद 19 / 6,11) खण्ड 2, प्रकरण : 6 तुलनात्मक अध्ययन न तेन भिक्खु होति, यावता भिक्खते परे / विस्सं धम्म समादाय, भिक्खु होति न तावता // न मोनेन मुनी होति, मुल्हरूपो अविद्दसु / यो च तुलं व पग्णयह वरमादाय पण्डितो // न तेन अरियो होति, येन पाणानि हिंसति / अहिंसा सब्बपाणानं अरियो'ति पवुच्चति // न जटाहि न गोत्तेहि, न जच्चा होति ब्राह्मणो। मोनाद्धि स मुनिर्भवती, नारण्यवसनान्मुनिः / / (धम्मपद 19 / 13) (धम्मपद 1915) (धम्मपद 26 / 11) (उद्योगपर्व 43 / 35) समितत्ता हि पापानं समणो ति पवुच्चति / (धम्मपद 1910) पापानि परिवज्जेति स मुनी तेन सो मुनी / यो मुनाति उभो लोके मुनी तेन पवुच्चति // (धम्मपद 19 / 14) न जच्चा ब्राह्मणो होति, न जच्चा होति अब्राह्मणो / कम्मुना ब्राह्मणो होति, कम्मुना होति अब्राह्मणो // कस्सको कम्मुना होति,, सिप्पिको होति कम्मुना / वाणिजो कम्मुना होति, पेस्सिको होति कम्मुना // (सुत्तनिपात, महा० 6 / 57,58) न जच्चा वसलो होती, न जच्चा होति ब्राह्मणो / कम्मुना वसलो होति, कम्मुना होति ब्राह्मणो // (सुत्तनिपात, उर० 121,27) चातुर्वर्ण्य मया सृष्टं, गुणकर्माविभागशः / तस्य कर्तारमपि मां, विड्यकर्तारमव्ययम् // (गीता 4 / 13) ते तथा सिक्खित्ता बाला अज्जमज्जम गारवा / नादयिस्सन्ति उपज्झाये खलूको विय सारथिं // (थेरगाथा 676) सूचे. लभेथ निपकं सहायं, सद्धि चरं साधुविहारिधीरं / अभिभूय्य सब्बानि परिस्सयानि, चरेय्य तेनत्तमनो सतीमा // नो चे लभेथ निपकं सहायं, सद्धि चरं साधुविहारिधीरं / राजाव रठं विजितं पहाय, एको चरे मातंगर व नागो॥ एकस्य चरितं सेय्यो, नत्थि बाले सहायता / एको चरे न च पापानि कायिरा। अप्पोस्सुक्को . मातंगर व नागो॥ (धम्मपद 23 / 6,10,11) अद्धा पसंसाम सहायसंपदं सेट्ठा समा सेवितव्वा सहाया / एते अलद्धा अनवज्जभोजी, एगो चरे खग्गविसाणकप्पो // (सुत्तनिपात्त, उर० 3 / 13)