________________ 448 उत्तराध्ययन एक : समीक्षात्मक अध्ययन . (16 / 15) जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा य मरणाणि य / अहो दुक्खो हु: संसारो, जत्य कीसन्ति जन्तवो // अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नन्दणं वणं // अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य / अप्पा. मित्तममित्तं - च, दुप्पट्ठियसुपट्ठिओ // (20136,37) (20 // 48) (20 / 24) न तं अरी कण्ठछेत्ता करेइ, जं से करे अप्पणिया दुरप्पा। से नाहिई मुच्चुमुहं तु पत्ते, पच्छाणुतावेण दयाविहूणो // दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं, निरंगणे सव्वओ विप्पमुक्के / तरित्ता समुदं व महाभवोघं, समुद्दपाले अपुणागमं गए // धिरत्थु ते जसोकामी ! जो तं जीवियकारणा। वन्तं इच्छसि आवेडं, सेयं ते मरणं भवे // अग्निहोत्तमुहा वेया, जन्नट्ठी वेयसां मुहं / नक्खताण मुहं चन्दो, धम्माणं कासवो मुहं // (22 / 42) (25 // 16) (25 / 22) (25 / 23) तपसपाणे वियाणेत्ता, संगहेण य थावरे / जो न हिंसइ तिविहेणं, तं वयं बृम माहणं // कोहा व जइ वा हासा, लोहा वा जइ वा भया। मुसं न वयई जो उ, तं वयं बूम माहणं // जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा / एवं अलित्तो कामेहि, तं वयं बूम माहणं // म वि मुण्डिएण समणो, न ओंकारेण बम्भणो। . न मुणी रणवासेणं, कुसचीरेण न तावसो // (25 / 26) *(25 / 26)