________________ खण्ड 2. प्रकरण : 5 सभ्यता और संस्कृति पूड़े और खाजे उस समय के विशेष मिष्ठान्न थे, जो विशेष अवसरों पर बनाए जाते थ। प्रस्तुत सूत्र ( 12 / 35 ) में जो 'पभूयमन्नं' शब्द आया है, वृत्तिकार ने उसका अर्थ 'पूड़े' और 'खाजे' किया है / / 'घृतपूर्ण' घी और गुड़ से बनाए जाते थे। यह प्रमुख मिष्ठान्न था।' गन्ने चूसने का प्रचलन था। कई लोग गन्नों को कोल्हों में पेर कर रस पीते थे। गन्ने को छील कर उसकी दो-दो अंगुल की गंडेरियाँ बनाई जातीं। उन पर पीसी हुई इलायची डाली जाती और उन्हें कर्पूर से वासित किया जाता था। काँटे से उन्हें थोड़ा काटा जाता था। ईख के साथ कद् बोने का भी प्रचलन था। कद् को लोग गुड़ के साथ मिला कर खाते थे।५ दशपुर में 'इक्षुगृह' का उल्लेख मिलता है। ___ फसल को सूअरों का भय रहता था। कृषक लोग सींग आदि बजा कर अपने-अपने खेतों की रक्षा करते थे। दास प्रथा . . उत्तराध्ययन में दास को भी एक काम-स्कन्ध माना गया है। उसका अर्थ है'कामनापूर्ति का हेतु'। चार काम-स्कन्ध ये हैं-(१) क्षेत्र-वास्तु-भूमि और गृह, (2) हिरण्य-सोना, चाँदी, रत्न आदि, (3) पशु और (4) दासपौरुष / जिस प्रकार क्षेत्र-वास्तु, हिरण्य ओर पशु क्रीत होते थे, उसी प्रकार दास भी क्रीत होते थे। इनका क्रीत सामग्री के रूप में उपयोग किया जा सकता था। : दास-चेटों की तरह दास-चेटियाँ भी होती थीं। ये अपनी स्वामिनी के साथ यक्षमंदिर में खाद्य, भोज्य, गन्ध, माल्य, विलेपन और पटल ले कर जाती थीं। दासीमह भी मनाया जाता था। उसमें दासियाँ धूम-धाम से मन-बहलाव करती थीं। १-बृहद् वृत्ति, पत्र 369 / २-वही, पत्र 209 / ३-सुखबोधा, पत्र 53 / ४-वही, पत्र 61-62 / ५-वही, पत्र 103 / ६-वही, पत्र 23 / ७-उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० 98 / ८-उत्तराध्ययन, 3 // 17 // ९-सुखबोधा, पत्र 174 / १०-वही, पत्र 124 /