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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 5 सभ्यता और संस्कृति 426 एक वणिक ने अपनी पत्नी को इसलिए छोड़ दिया कि वह सारा दिन शरीर की साज-सज्जा में व्यतीत करती थी और घर की सार-संभाल में असमर्थ थी।' एक ब्राह्मण-पुत्री ने भी प्रसंग पर यही कहा-"तू दूसरा पति कर ले।" किसी चोर के पास बहुत धन था। उसने यथेच्छ शुल्क दे कर अनेक कन्याओं के साथ विवाह किया था। चम्पा नगरी के सुवर्णकार ने पाँच-पाँच सौ सुवर्ण दे कर अनेक कन्याओं के साथ विवाह किया था। दहेज राजकन्याओं के विवाह में घोड़े, हाथी आदि मी दहेज में दिए जाते थ / वाराणसी के राजा सुन्दर ने अपनी कन्या कमलसेना को हजार गाँव, सौ हाथी, एक लाख पदाति, दस हजार घोड़े और विपुल भण्डार दहेज में दिया।" सौतिया डाह राजाओं के अनेक पत्नियाँ होती थीं। परस्पर एक-दूसरे से ईर्ष्या होना स्वाभाविक था। वे एक-दूसरे के प्रति शिकायत करतीं और समय-समय पर अनेक षड्यंत्र भी रच लेती थीं। क्षितिप्रतिष्ठित नगर के राजा जितशत्रु की प्रिय रानी कनकमञ्जरी पर अन्य रानियों ने आरोप लगाया। राजा ने स्वयं उसकी परीक्षा की। किन्तु उसे कोई दोष हाथ नहीं लगा। अन्त में उसने कनकमञ्जरी को पटरानी बना दिया। __कंचनपुर के राजा विक्रमयशा की पाँच सौ रानियों ने राजा की प्रिय रानी विष्णुश्री को ईर्ष्या-द्वेष क्श कार्मणयोग (टोना) कर मार डाला। १-मुखबोधा, पत्र 97 / .. '२-बृहद् वृत्ति, पत्र 137 / ३-वही, पत्र 207 / ४-वही, पत्र 252 / ५-वही, पत्र 88 वरगामाण सहस्सं, सयं गइदाण विउलभंडारं। पाइक्काण य लक्खं, तुरयाणं दससहस्साइं // ६-वही, पत्र 143 / ७-वही, पत्र 239 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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