________________ - 425 खण्ड 2, प्रकरण : 5 सभ्यता और संस्कृति 425 प्रासाद-गृह मकान अनेक प्रकार के होते थे / राजाओं या समृद्ध लोगों के गृह 'प्रासाद' कहलाते थे। वे सात या उससे अधिक मंजिलों के होते थे। उनकी भित्तियाँ सोने-चांदी की होती थीं और खम्भे मणि-मुक्ताओं से अलंकृत किए जाते थे / ' राजप्रासादों के आँगण मणि और रत्नों से जटित होते थे। एक ओर ऐसे प्रासाद तथा धनवानों के गृहों की श्रेणियाँ थीं तो दूसरी ओर निर्धन व्यक्तियों की बस्तियाँ भी थीं। वे बहुत गंदी होती थीं। उनके गृह-द्वार जीर्ण चटाई से ढंके जाते थे। झरोखे वाले मकानों का प्रचलन था। उसमें बैठ कर नगरावलोकन किया जाता था। कई बड़े मकानों में भोहरे भी होते थे। केवल भूमि-गृहों का भी उल्लेख मिलता है। ___ इस सूत्र में पाँच प्रकार के प्रासादों का उल्लेख हुआ है-(१) उच्चोदय, (2) मधु, (3) कर्क, (4) मध्य और (5) ब्रह्म / / 'वर्द्धमानगृह' और 'बालग्गपोइया' का भी उल्लेख मिलता है।" वास्तुसार में घरों के चौंसठ प्रकार बतलाए हैं। उनमें तीसरा प्रकार वर्द्धमान है। जिसके दक्षिण दिशा में मुखवाली गावीशाला हो, उसे 'वर्द्धमान' कहा गया है। बालग्गपोइया का अर्थ है-'चन्द्रशाला' या 'जलाशय में निर्मित लघु प्रासाद / अटवी और उद्यान राजगृह नगर के पास अठारह योजन लम्बी एक महाअटवी थी, जहाँ बलभद्र प्रमुख पाँच सौ चोर निवास करते थे। वे पथिकों को पकड़-पकड़ कर अपने सरदार के पास ले जाते थे। . / १-बृहद् वृत्ति, पत्र 110 / २-वही, पत्र 110 / .३-वही, पत्र 451 / ४-वही, पत्र 60 / ५-उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० 101 / ६-उत्तराध्ययन, 13 / 13 / ७-वही, 9 / 24 / -वास्तुसार 82, पृ० 38 / -९-उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० 123 / १०-सुखबोधा, पत्र 125 /