________________ 422 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन / आखेट कर्म राजा लोग आखेट-कर्म में बहुत रस लेते थे। जब वे शिकार के लिए जाते तब. चतुरंगिणी सेना से सज्ज होकर, घोड़े पर बैठ प्रस्थान करते थे। मुख्यतः हिरणों. का शिकार किया जाता था।२ उनको पकड़ने के लिए 'पाश' और 'कूटजाल' काम में लिए जाते थे / पक्षियों का शिकार भी किया जाता था। उनको पकड़ने के लिए 'बाज' शिक्षित किए जाते थे। जाल और वज्रलेप का भी उपयोग होता था।४ ____ मछलियाँ पकड़ने का भी बहुत प्रचलन था / उनको पकड़ने के दो साधन थे-बडिश और जाल / जब जाल में मछलियाँ फँस जातीं, तब उसे खींच लिया जाता / बडिश मकर के आकार के होते थे। पशु उस समय कम्पोज देश में आकीर्ण और कन्थक घोड़े बहुत ही प्रसिद्ध थे। आकीर्ण-शील, रूप, बल आदि गुणों से व्याप्त / कन्थक- खरखराहट या शस्त्र-प्रहार से नहीं चौंकने वाले। ये दोनों प्रकार के घोड़े चलने में बहुत तेज होते थे / उत्तराध्ययन में अनेक स्थानों पर 'गलि-अश्व' का भी उल्लेख आता है / वे दुर्विनीत होते थे। उन्हें चलाने या रोकने में भी चाबुक का प्रयोग करना पड़ता था। - युद्धों में व राजा की सवारी के लिए हाथी का उपयोग होता था। राजा लोग अपनी पुत्रियों को विवाह में हाथी और घोड़े भी देते थे। हाथी तान सुनने के रसिक होते थे। हाथी को वश में करने के लिए समुचित शिक्षा दी जाती थी। एक बार एक राजकुमार ने अपने प्रधान हाथी, जो उन्मत्त होकर जन-समूह को अस्त कर रहा था, को शास्त्र-विधि से वश में कर लिया। १-उत्तराध्ययन, 28 / 1,2 / २-वही, 98 / 3 / ३-वही, 16 / 63 / ४-वही, 19065 / ५-वही, 19 / 64 ; बृहद्वृत्ति, पत्र 460 / ६-बृहद्वृत्ति, पत्र 348 / ७-वही, पत्र 40 / ८-सुखबोधा, पत्र 88 / ६-वही, पत्र 247 / १०-वही, पत्र 247 : सत्यमणिएहि करणेहिं नीओ समं /