________________ खण्डं 2, प्रकरण : 5 सभ्यता और संस्कृति 416 अन्तर्देशीय व्यापार भारतीय व्यापारी अन्तर्देशीय व्यापार में दक्ष थे। वे किराना लेकर बहुत दूर-दूर तक जाते थ। सार्थवाह-पुत्र अचल यहाँ से वाहनों को भर कर पारसकुल (ईरान) गया। वहां सारा माल बेच कर वेन्यातट पर आया।' चम्पा नगरी का वणिक पालित चम्पा से नौकाओं में माल भर कर रास्ते के नगरों में व्यापार करता हुआ 'पिहुण्ड'२ नगर में पहुंचा। भारत में रत्नों का विशाल व्यापार होता था। विदेशी लोग यहाँ रत्न खरीदने आया करते थे। पारसकुल के व्यापारी भी यहाँ रत्न खड़ीदने आते थे। एक बार एक वणिक के पुत्रों ने विदेशी वणिकों के हाथ सारे रत्न बेच दिये थे। जब व्यापारी दूर देश व्यापार करने जाते तब उन्हें राजा की अनुमति प्राप्त करनी पड़ती थी। चम्मा नगरी के सुवर्णकार कुमारनन्दी ने पंचशैलद्वीप के लिए प्रस्थान की घोषणा से पूर्व वहाँ के राजा की अनुमति प्राप्त की और उसे सुवर्ण आदि बहुमूल्य उपहार प्रदान किये / जो माल दूर देशों से आता था, उसकी जाँच करने के लिए व्यक्तियों का एक विशेष समूह होता था।६ ___ अनेक अमीर लोग मिलजुल कर घृत के घड़ों से गाड़ी भर नगरों में बेचने के लिए जाते थे। बड़े नगरों में कूत्रिकापण होते थे। वहाँ सभी प्रकार की वस्तुएँ प्राप्त होती थीं।। इनकी तुलना आधुनिक कोओपरेटिव स्टोरों से की जा सकती है। व्यापारी लोग बैलों, भैंसों आदि पर माल लाद कर सार्थ के रूप में चलते थे। १-सुखबोधा, पत्र 64 / २-देखिए-भौगोलिक परिचय के अन्तर्गत पिहुण्ड नगर। ३-उत्तराध्ययन, 2112 / ४-बृहद्वृत्ति, पत्र 147 : . रयणाणि विदेसीवणियाण हत्थे विक्कीयाणि / ५-सुखबोधा, पत्र 252 / ६-वही, पत्र 65 / ७-वही, पत्र 51 / -वही, पत्र 73 / ६-हवृत्ति, पत्र 605 //