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________________ 418 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन युद्ध में पराजित राजाओं के साथ साधारण सैनिक-सा व्यवहार भी कर लिया जाता था। द्विमुख ने चण्डप्रद्योत को बन्दी बना पैरों में बेड़ियाँ डाल दी थीं।' युद्ध में चतुरङ्गिणी सेना का नियोजन किया जाता था। शस्त्र प्रस्तुत सूत्र में अनेक शस्त्रों का नामोल्लेख हुआ है। वे शस्त्र युद्ध में काम आते थे। (1) अपि-तलवार / यह तीन प्रकार की होती थी। असि- लम्बी तलवार / खड्ग-- छोटी तलवार / ऋष्टि3- दुधारी तलवार / (2) भल्ली-एक प्रकार का भाला, बर्थी। (3) पट्टिस- इसके पर्याय-नाम तीन हैं-खुरोपम, लोहदण्ड, तीक्ष्णधार / इनके आधार पर उसका आकार यह बनता है जो खुरपे के आकार वाला लोहदण्ड तथा तीक्ष्ण धार वाला होता है, उसे पटिस कहा जाता है। (4) मुसंडी- यह लकड़ी की बनी होती है और इसमें लोहे के काँटे जड़े हुए होते हैं। (5) शतघ्नी–यान्त्रिक तोपा। इनके अतिरिक्त मुद्गर, शूल, मुशल, चक्र, गदा आदि के नाम भी मिलते हैं। सुरक्षा के साधन नगर की सुरक्षा के लिए जो साधन काम में लिए जाते थे, उनमें से कुछेक के नाम प्रस्तुत सूत्र में मिलते हैं - प्राकार धूलि अथवा इंटों का कोट / गोपुर प्रतोलीद्वार या नगर-द्वार / अट्टालिका प्राकार-कोष्ठक के ऊपर आयोधन स्थान अर्थात् बुर्ज / उत्सूलक खाइयाँ या ऊपर से ढके गर्त / गर्त पानी से भरे रहते थे। १-सुखबोधा, पत्र 136 / बंधिऊण पज्जोओ पवेसिमो नयरं / दिलं चलणे कडयं / २-उत्तराध्ययन 1812 / ३-शेषनाममाला, 148,16 / ४-वृहद्वृत्ति, पत्र 311 //
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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