________________ 413 खेण्ड 2, प्रकरणं : 5 सभ्यता और संस्कृति राजा और युवराज सामुद्रिक-शास्त्र के अनुसार चक्र, स्वस्तिक, अंकुश आदि चिह्न राजा के लक्षण माने जाते थे। छत्र, चामर, सिंहासन आदि राज-चिह्न थे / राजा सर्वशक्ति-सम्पन्न व्यक्तित्व होता था। सामान्यतः राजा का उत्तराधिकारी उसका ज्येष्ठ पुत्र होता था। यदि ज्येष्ठ पुत्र विरक्त हो जाता तो छोटे पुत्र को राज- सिंहासन दे दिया जाता था। कभी-कभी समझदार व वयःप्राप्त हुए बिना ही राजा लोग अपने पुत्र को युवराज पद दे देते थे। अचलपुर के राजा जितशत्रु ने अपने पुत्र को शिशुवय में ही युवराज बना दिया था / राजकुमार जब दुर्व्यसनों में फंस जाते, तो राजा उन्हें देश-निकाला दे देते थे। उज्जनी का राजपुत्र मूलदेव सभी कलाओं में निपुण था। किन्तु उसे जुआ खेलने का व्यसन था। राजा ने उसे घर से निकाल दिया / शंखपुर के राजा सुन्दर का राजकुमार 'अगडदत्त' था। वह मद्य, मांस, आदि सभी व्यसनों में प्रवीण था / एक बार उसने नगर में कुछ गड़बड़ी पैदा कर दी। राजा ने उसे देश-निकाला दे दिया। कई राजा गोकुल-प्रिय होते थे। राजा करकण्डु के पास अनेक गोकुल थे। उसके पास लम्बे सींगवाला एक गन्ध-वृषभ था।" अन्तःपुर राजाओं के अन्तःपुर में अनेक रानियाँ होतो थीं। वे बारी-बारी से राजा के वास-भवन में जाती थीं। कञ्चनपुर के राजा विक्रमयशा के पाँच सौ रानियाँ थीं। कभी-कभी राजा लोग सुन्दर गृहिणियों को बलात् अपने अन्तःपुर में ले आते थे। एक बार कञ्चनपुर में नागदत्त नामक सार्थवाह की सुन्दर पत्नी विष्णुश्री को राजा ने १-बृहद् वृत्ति, पत्र 489 / २-वही, पत्र 99 / ३-सुखबोधा, पत्र 59 / ४-वही, पत्र 84: रे ! रे ! भणह कुमारं, सिग्धं चिय वज्जिऊण मह विसयं / अन्नत्य कुणसु गमणं, मा भणसु य ज न कहियं ति॥ ५-वही, पत्र 135 / ६-वही, पत्र 142: एगेगा वारएण रएणीय राइणो वासमवणे आगच्छइ / ७-वही, पत्र 239 /