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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 5 निक्षेप-पद्धति 405 अनिशीथ के दो प्रकार हैं-- (1) लौकिक- पुराण आदि / (2) लोकोत्तर- आचारांग आदि / अबद्ध के दो प्रकार हैं (1) लौकिक-बत्तीस अडिडया, छत्तीस पच्चड्डिया, सोलह करण और पाँच संस्थान / (2) लोकोत्तर—अर्हत्-प्रवचन में पाँच सौ आदेश अबद्ध हैं / इनका अङ्ग या उपाङ्ग में कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता। जैसे (क) मरुदेवा अत्यन्त स्थावर (पूर्वकाल में स्थावरकाय से अनिःसृत ) होकर सिद्ध हुई। (ख) स्वयम्भूरमण समुद्र में मत्स्य और पद्म के वलय-वर्जित सभी संस्थान होते हैं। (ग) विष्णुकुमार महर्षि ने लक्ष योजन प्रमाण की शरीर-विकुर्वणा की थी। (घ) अतिवृष्टि के कारण 'कुणाला' का नाश हुआ और उसके बाद तीसरे वर्ष साकेत नगरी में 'करुड' और 'कुरुड' ( बृहद्वृत्ति के अनुसार 'कुरुड' और 'विकुरुड') नामक मुनियों का मरण हुआ और वे अत्यन्त अशुभ अध्यवसायों के कारण सातवें नरक में गए। (ङ) कुणाला नगरी के विनाश के तेरहवें वर्ष में श्रमण भगवान महावीर को केवल-ज्ञान की निष्पत्ति हुई, आदि आदि / नोश्रुतकरण दो प्रकार का है (1) गुणकरण- __तपःकरण और संयम-करण / ..(2) योजनाकरण- मन, वचन और काया का व्यापार / ' ३-संयोग जिसके साय या जिसमें 'यह मेरा है'-ऐसी बुद्धि होती है, उसे अथवा आत्मा के साथ आठ कर्मों के सम्बन्ध को 'संयोग' कहते हैं। इसके छः प्रकार हैं(१) नाम-संयोग (4) क्षेत्र-संयोग (2) स्थापना-संयोग (5) काल-संयोग (3) द्रव्य-संयोग (6) भाव-संयोग द्रव्य संयोग दो प्रकार का है-(१) संयुक्त द्रव्य-संयोग और (2) इतरेतर द्रव्यसंयोग / इतरेतर द्रव्य संयोग के छः प्रकार हैं। उनमें एक प्रकार है-सम्बन्धन-संयोग / १-(क) उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० 103-108 / (ख) बृहवृत्ति, पत्र 194-205 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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