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________________ 396 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन तक और अन्तिम दो ने पांच-पाँच वर्ष तक श्रामण्य का पालन किया। इसी प्रकार . दीर्घसेन अदि 13 कुमारों ने सोलह-सोलह वर्ष तक श्रामण्य का पालन किया। श्रेनिक की अनेक रानियाँ भी भगवान् महावीर के पास दीक्षित हुई थीं। आगम तथा आगमेनर ग्रन्थों में श्रेणिक से सम्बन्धित इतने उल्लेख हैं कि उनके अध्ययन से यह कहा जा सकता है कि वह जैनधर्मावलम्बी था। उसका जीवन भगवान महावीर की जीवन-घटनाओं से इतना संपृक्त था कि स्थान-स्थान पर भगवान को श्रेणिक की बातें कहते पाते हैं। इसके अनेक पुत्र तथा रानियों का जैन-शासन में प्रवजित होना भी इसी ओर संकेत करता है कि वह जैन धर्मावलम्बी था। बौद्ध-ग्रन्थ उसे महात्मा बुद्ध का भक्त मानते हैं। कई विद्वान यह भी मानते हैं कि महाराज श्रेणिक जीवन के प्रवाई में जैन रहा होगा, किन्तु उत्तरार्द्ध में वह बौद्ध बन गया था। इसीलिए जन कथा-ग्रन्थों में उसके नरक जाने का उल्लेख मिलता है। नरक-गमन की बात वस्तु-स्थिति का निरूपण है। इससे यह सिद्ध नहीं होता कि वह पहले जैन था और बाद में बौद्ध हो गया। नरक-गमन के साथ-साथ भावी तीर्थङ्कर का उल्लेख भी मिलता है। कई यह भी अनुमान करते हैं. कि वह किसी धर्म विशेष का अनुयायी नहीं बना किन्तु जैन, बौद्ध आदि सभी धर्मों के प्रति समभाव रखता था तथा सब में उसका अनुराग था। - कुछ भी हो जैन-साहित्य में जिस विस्तार से उसका तथा उसके परिवार का वर्णन मिलता है, वह अन्यत्र नहीं है। श्रेणिक का सम्पूर्ण जीवन तथा आगामी जीवन का इतिहास जैन-ग्रन्थों में सन्हब्ध है। यदि उसका जैनधर्म के साथ गाढ़ सम्बन्ध नहीं होता तो इतना विस्तृत उल्लेख जैन ग्रन्थों में कभी नहीं मिलता। श्रेगिक के जीवन का विस्तार से वर्णन निरयावलिका में है। इसके भावी तीर्थङ्करजीवन का विस्तार स्थानांग (6 / 3 / 663) की वृत्ति (पत्र 458-468) में है। अनाथी मुनि (2016) ये कौशाम्बो नगरी के रहने वाले थे। इनके पिता बहुत धनाढ्य थे। एक बार १-अगुत्तरोपपातिक दशा, वर्ग 1 / २-वही, 60 2 / ३-कई विद्वान् इनके पिता का नाम 'धनसंचय' देते हैं। इस नामकरण का आधार उतराज्ययन (2018) में आए 'पभूयधणसंचयो' शब्द है, परन्तु यह आधार भ्रामक है। यह शब्द उनके पिता की आढ्यता का द्योतक हो सकता है न कि नाम का। यदि हम नाम के रूप में केवल 'धनसंचय' शब्द लेते हैं, तो 'पभूय' शब्द शेष रह जाता है और अकेले में इसका कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। टीकाकार इस विषय में मौन हैं।
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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