________________ 360 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन द्विमुख (18 / 45) देखिए–'प्रत्येक-बुद्ध'-प्रकरण दूसरा / नमि (18 / 45) देखिए–'प्रत्येक-बुद्ध'-प्रकरण दूसरा / नगगति(१८।४५) देखिए–'प्रत्येक-बुद्ध'-प्रकरण दूसरा / उद्रायण (18 / 47) ये सिन्धु-सौवीर जनपद के राजा थे। ये सिन्धु-सौवीर आदि सोलह जनपदों, वीतभय आदि 363 नगरों, महासेन आदि दस मुकुटधारी राजाओं के अधिपति थे। वैशाली गणतंत्र के राजा चेटक की पुत्री 'प्रभावती' इनकी पटरानी थी। काशीराज (18 / 48) इनका नाम नन्दन था और ये सातवें बलदेव थे। ये वराणसी के राजा अग्निशिख के पुत्र थे। इनकी माता का नाम जयन्ती और छोटे भाई का नाम दत्त था। विजय (18 / 46) ये द्वारकावती नगरी के राजा ब्रह्मराज के पुत्र थे। इनकी माता का नाम सुभद्रा था। ये दूसरे बलदेव थे। इनके छोटे भाई का नाम द्विपिष्ठ था। ___ उत्तराध्ययन के वृत्तिकार नेमिचन्द्र ने लिखा है कि "आवश्यक नियुक्ति में इन दो बलदेवों-नन्दन और विजय का उल्लेख आया है। इसलिए हम उसी के अनुसार यहाँ उनका विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं। यदि ये दोनों कोई दूसरे हों और आगमज्ञ-पुरुष उन्हें जानते हों तो उनकी दूसरी तरह से व्याख्या करें। इस कथन से इतना सष्ट हो जाता है कि सूत्रगत ये दोनों नाम उस समय सन्दिग्ध थे। शान्त्याचार्य ने इन दोनों पर कोई ऊहापोह नहीं किया है। नेमिचन्द्र ने अपनी टीका में कुछ अनिश्चित-सा उल्लेख कर छोड़ दिया है। ... यदि हम प्रकरणगत क्रम पर दृष्टि डाले तो हमें यह लगेगा कि सभी तीर्थङ्करों, चक्रवर्तियों तथा राजाओं के नाम क्रमशः आए हैं। उद्रायण भगवान् महावीर के समय में हुआ था। उनके बाद ही दो बलदेवों-काशीराज नन्दन और विजय का उल्लेख असंगत-सा लगता है। अतः यह प्रतीत होता है कि ये दोनों महावीरकालीन ही कोई राजा होने चाहिए। जिस श्लोक (18 / 48) में काशीराज का उल्लेख है. उसी में 'सेय' शब्द भी आया है। टोकाकारों ने इसे विशेषण माना है। कई इसे नामवाची मानकर 'सेय' राजा की ओर संकेत करते हैं / आगम-साहित्य में भी कहीं 'काशीराज सेय' का १-सुखबोधा, पत्र 256 /