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________________ Si उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन कौशाम्बी और राजगृह के बीच अठारह योजन का एक महा अरण्य था। वहाँ बलभद्र प्रमुख कक्कडदास जाति के पाँच सौ चोर रहते थे। कपिल मुनि द्वारा वे प्रतिबुद्ध हुए। - जब भगवान् महावीर साकेत के 'सुभूमि भाग' नामक उद्यान में विहार कर रहे थे, तब उन्होंने अपने साधु-साध्वियों के विहार की सीमा की / उसमें कौशाम्बी दक्षिण दिशा की सीमा-निर्धारण नगरी थी। कौशाम्बी के आसपास की खुदाई में अनेक शिलालेख, प्राचीन मूर्तियाँ, आयगपट्ट, गुफाएं आदि निकली हैं। उनके सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह क्षेत्र जैन-धर्म का प्रमुख केन्द्र था। कनिंघम ने खुदाई में प्राप्त कई एक प्रमाणों से इसे बौद्धों का प्रमुख केन्द्र माना है। परन्तु कौशाम्बो के जैन-क्षेत्र होने के विषय में सर विन्सेन्ट स्मिथ ने लिखा है-"मेरा यह दृढ़ निश्चय है कि इलाहाबाद जिले के अन्तर्गत 'कोसम' गाँव में प्राप्त अवशेषों में ज्यादातर जैनों के हैं। कनिंघम ने जो इन्हें बौद्ध अवशेषों के रूप में स्वीकार किया है, वह ठीक नहीं है। निःसन्देह ही यह स्थान जैनों की प्राचीन नगरी 'कौशाम्बी' का प्रतिनिधित्व करता है / इस स्थान पर, जहाँ मन्दिर विद्यमान हैं, वे आज भी महावीर के अनुयायियों के लिए तीर्थ-स्थल बने हुए हैं। मैंने अनेक प्रमाणों से सिद्ध किया है कि बौद्ध-साहित्य की कौशाम्बी किसी दूसरे स्थल पर थी।"3 चम्पा __ यह अंग जनपद की राजधानी थी। कनिंघम ने इसकी पहचान भागलपुर से 24 मील पूर्व में स्थित आधुनिक 'चम्पापुर' और 'चम्पानगर' नामक दो गांवों से की है। उन्होंने लिखा है-"भागलपुर से ठीक 24 मील पर 'पत्थारघाट' है। यहीं या इसके आसपास ही चम्भा की अवस्थिति होनी चाहिए। इसके पास ही पश्चिम की ओर एक १-उत्तराध्ययन बृहद् वृत्ति, पत्र 288-289 / २-बृहत्कल्प सूत्र, भाग 3, पृ० 912 / 3-Journal of Royal Asiatic Society, July, 1894. I feel certain that the remains at kosam in the Allahabad District will prove to be Sain, for the most part and not Buddhist as Cunningham supposed. The village undoubtedly represents the Kausambi of the Jains and the site, where temples exist, is still, a place of pilgrimage for the votaries of Mahavira. I have shown good reasons for believing that the Buddhist Kausambi was a different place.
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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