________________ खण्ड 2, प्रकरण : 3 भौगोलिक परिचय 375 पुरिमताल ___ इसकी अवस्थिति के विषय में भिन्न-भिन्न मान्यताएं है / कई विद्वान् इसकी पहचान मानभूम के पास 'पुरुलिया' नामक स्थान से करते है / हेमचन्द्राचार्य ने इसे अयोध्या का शाखानगर माना है। आवश्यक नियुक्ति में विनीता के बहिर्भाग में 'पुरिमताल' नामक उद्यान का उल्लेख हुआ है। वहाँ भगवान् ऋषभ को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था और उसी दिन चक्रवर्ती भरत की आयुधशाला में चक्ररत्न की उत्पत्ति हुई थी। भरत का छोटा भाई ऋषभसेन 'पुरिमताल' का स्वामी था। जब भगवान् ऋषभ वहाँ आए तब उसने उसी दिन भगवान् के पास प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। विजयेन्द्र सूरि ने इस नगर की पहचान आधुनिक प्रयाग से की है, किन्तु अपनी मान्यता की पुष्टि के लिए कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके हैं। उन्होंने इतना मात्र लिखा है कि 'जन-ग्रन्थों में प्रयाग का प्राचीन नाम 'पुरिमताल' मिलता है।'४ सातवाँ वर्षावास समाप्त कर भगवान महावीर कंडाक सन्निवेश से 'लोहार्गला' नामक स्थान पर गए / वहाँ से उन्होंने पुरिमताल की ओर विहार किया। नगर के बाहर 'शकटमुख' नाम का उद्यान था। भगवान् उसी में ध्यान करने ठहर गए। पुरिमताल से विहार कर भगवान् उन्नाग और गोभूभि होते हुए राजगृह पहुँचे। चित्र का जीव सौधर्म कल्प से च्युत हो पुरिमताल नगर में एक श्रेष्ठी के घर में उत्पन्न हुआ। आगे चल कर ये बहुत बड़े ऋषि हुए। जार्ल सरपेन्टियर ने माना है कि 'पुरिमताल' का उल्लेख अन्यत्र देखने में नहीं आता। यह 'लिपि-कर्ता' का दोष संभव है। इसके स्थान पर 'कुरु-पञ्चाल' या ऐसा ही कुछ होना चाहिए। यह अनुमान यथार्थ नहीं लगता। हम ऊपर देख चुके हैं कि १-भारत के प्राचीन जैन तीर्थ, पृ० 33 / २-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित 1133389 : अयोध्याया महापुर्याः, शाखानगर मुत्तमम् / ययौ पुरिमतालाख्यं, भगवानृषभध्वजः // ३-आवश्यक नियुक्ति, गाथा 342 : उज्जाणपुरिमताले पुरी विणीआइ तत्थ नाणवरे / चक्कुप्पया य भरहे निवेअणं चेव दुहंपि // ४-तीर्थङ्कर महावीर, भाग 1, पृ० 209 / ५-सुखबोधा, पत्र 187 / / ६-दी उत्तराध्ययन, पृ० 328 /