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________________ 370 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन (1) करकण्डु पद्मावती का पुत्र था। वह चेटक राजा की पुत्री और दधिवाहन की पत्नी थी। ये दोनों भगवान् महावीर के समसामयिक थे / 1 (2) द्विमुख की पुत्री मदनमञ्जरी का विवाह उज्जैनी के राजा चण्डप्रद्योत के साथ हुआ था। यह भी भगवान महावीर के समसामयिक थे। चारों प्रत्येक-बुद्ध एक साथ हुए थे, इसलिए उन चारों का अस्तित्व भगवान् महावीर के समय में ही सिद्ध होता है। डॉ० हीरालाल जैन ने करकण्डु का अस्तित्व-काल ई० पू० 800 से 500 के बीच माना है। उक्त अभिमत के अनुसार यदि हम प्रत्येक-बुद्धों का अस्तित्व ई० पू० 500 के आसपास मान लें तो दोनों धाराओं की दूरी समाप्त हो जाती है। प्रथम धारा के अनुसार प्रत्येक-बुद्ध भगवान् पार्श्व के शासन-काल में माने जाते हैं और दूसरी धारा के अनुसार वे भगवान महावीर के शासन-काल में माने जाते हैं। भगवान महावीर दीक्षित हुए उससे पूर्व भगवान् पार्श्व का शासन-काल था / प्रत्येक-बुद्ध भगवान् महावीर की दीक्षा से पूर्व प्रव्रजित हुए हों और उनके शासन काल में भी जीवित रहे हों तो दोनों मान्यताएं सत्य के निकट पहुँच जाती हैं। प्रत्येक-बुद्धों का उल्लेख वैदिक-साहित्य में नहीं है। इससे यह स्पष्ट है कि वे श्रमण-परम्परा के थे। उपनिषद् साहित्य में जनक (या निमि) तथा महाभारत में जनक के रूप में उसी व्यक्ति का उल्लेख हुआ है, जिसका उत्तराध्ययन में 'नमि' के रूप में उल्लेख है। उत्तराध्ययन सूत्र में उनके प्रत्येक-बुद्ध होने का उल्लेख नहीं है। इसका प्रथम उल्लेख उत्तराध्ययन की नियुक्ति में मिलता है। उनके जीवन-वृत्त टोकाओं में मिलते हैं। उनका प्राचीन आधार क्या रहा है, यह निश्चयपूर्वक नहीं बताया जा सकता। बौद्ध-साहित्य में चारों प्रत्येक-बुद्धों का उल्लेख इस तथ्य की ओर ध्यान खींचता है कि वे महावीर के शासन काल से पूर्व प्रव्रजित हो चुके थे। भगवान् पार्श्व की परम्परा श्रमणों की सामान्य परम्परा रही है। भगवान महावीर के काल में निर्ग्रन्थ, आजीवक, शाक्य आदि श्रमण-संघों में भेद बढ़ चुका था। उस स्थिति में भगवान् महावीर के शासन-काल में प्रवजित होने वाले प्रत्येक-बुद्धों का बौद्ध-साहित्य में स्वीकार हो, यह संभव नहीं लगता। इन कारणों से प्रत्येक-बुद्धों का अस्तित्व भगवान् पार्श्व और भगवान् महावीर के शासन का संधि-काल होना चाहिए। १-सुखबोधा, पत्र 133-135 / २-वही, पत्र 136 / ३-करकण्डु चरिअ (मुनि कनकामर कृत) हीरालाल जैन द्वारा संपादित, भूमिका, पृ० 15 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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